उच्चतर समाजशास्त्रीय सिद्धान्त | Ucchatar Samajashastriy Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
417
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बे उच्चत्तर समाजशास्त्रीय सिद्धान्त
उसकी अपनी है । उसका दूसरा निवास अपनी जमीन के ठीक बाहर अपनी पडौसी कौम के
निवास की भूमि है। जब वह इस दूसरी कौम की जमीन के साथ अपने आपको पृथक
समुदायों से अलग-थलग है। यह पडौसी से पृथकता उसे किसी भी तरह के परिवर्तन को
स्वीकार करने नहीं देती । परिणामस्वरूप इस कौम की सम्पूर्ण सस्कृति में जडता आ जाती
है--एक प्रकार का ठहराव आ जाता है। इस स्थिति को बेकर और बार्नस ने मानसिक
अचलता (नए 8! प्रा एज के पद द्वारा व्यक्त किया है ।
जब मानसिक अचलता किसी कौम में आ जाती है तो यह कौम किसी भी तरह के
सरचनात्मक पश्वर्तन को सिद्धान्त या विचारधारा को अपनाने के लिये राजी नहीं होती 1 19
वी शताब्दी में ब्रिटिश उपनिवेशवादी राज ने हमारे देश में कारखानो से बुना सूती माल
बाजार में रखा तो लोगों ने साधारण रूप से इसे नही अपनाया । अब भी उनके लिये चरखा
विश्वसमीय साधन था जिसके द्वारा कपडा बुना जा सकता था। गाधी जी लोगों की इस
मानसिक अचलता को भली प्रकार समझते थे। इसी कारण उन्होंने विदेशी सूती कपडों का
विदेष चरखे से किया । कुछ देश तो ऐसे हैं जिन्होंने वर्षों तक अपनी नीति के अनुसार अपने
आपको दूसरे समुदायों से पृथक रखा है । ऐसे देश यह मानकर चलते हैं कि दूसरे समुदायों
के साथ सम्पर्क उनकी पीढियों से चली आने वाली सस्कृति को गदला कर देते हैं। इन
लोगों में मानसिक अचलता इतनी गहरी और शक्तिशाली होती है कि के किसी भी प्रकार के
सामाजिक परिवर्तन की कतई इच्छा नहीं रखते /
(2). नातेदारी सगठन और मानसिक अचलता
कंस 0दूल्ववाछवठीर काएँ हवा दादी
आदिम और प्रागूलपि समाजों की मानसिक अचलता का एक और कारक, मातेदारी संगठन
है। इन समाजों को एकता की कडी में बाथे रखने का काम नातेदारी व्यवस्था करती है ।
पानी की धारा को तो काटा जा सकता है, पर एक ही रक्त के लोगों को कभी अलग नहीं
किया जा सकता । इस तरह का चिन्तन प्रागूलपि समाज को बाधे रखता है । नातेदारी सम्बन्ध
इतने शक्तिशाली होते हैं कि उनके सामने गैर नातेदारों के सम्बन्ध बेमतलब हो जाते हैं ।
बचपन से ही बच्चा इस तरह बडा किया जाता है कि वह वयस्क होने के बाद अपने मातेदारों
से बाहर किसी भी प्रकार के सम्बन्ध को सन्देह की दृष्टि से देखता है। यदि किमी जाति या
कौम का व्यक्ति गैर कौम के व्यक्तियों के साथ किसी तरह जुड़ता है तो लगता है जैसे शरीर
का एक अग शरीर से छूटकर अन्यत्र चला गया हो । नातिदारी संगठन, इस भाँति प्रागलपि
समाज में सास्कृतिक विकास नहीं होने देता । इसलिये मानसिक अचलता को बनाये रखने में
नतिदारी सगठन बहुत शक्तिशाली हैं ।
(उ). सामाजिक नियत्रण ओर वृद्धबत
5०्दाया (लाए दरताएँं हर
सामाजिक विद्वार था सोच में यानि सामाजिक सिद्धान्नों के निर्माण में पुथकता, मानसिक
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