'नैषधी रचितं ' में उपलब्ध शास्त्रीय सन्दर्भों की मीमांसा | 'Nasdhiyecharitam' Mein Uplabdh Shastriya Sandhrabhon Ki Mimansa

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'Nasdhiyecharitam' Mein Uplabdh Shastriya Sandhrabhon Ki Mimansa by रामबहादुर -Rambhadur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीहर्ष का व्यक्तित्व एवं कृति रव रचना कर्ततृत्व - सस्कृत का काव्य वाडइमय न केवल हृदयस्पर्शी, बुद्धिचमत्कारकारी एव सरसता की दृष्टि से महनीय है, अपितु वह विविध ज्ञान विज्ञानराशि का अनुपम कोष भी है। सस्कृत काव्य साहित्य न केवल गुणवत्ता अपितु सख्या की दृष्टि से भी अपरिमित है, तथापि अध्ययन अध्यापन की परम्परा मे वृहत्त्रयी एव लघुत्रयी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। व्याकरणतत्र मे प्रचलित “यथोत्तर मुनीना प्रामाण्यम्‌” के अ उुप्ार पूर्व की अपेक्षा पर मुनि श्रेष्ठ माने जाते है। यह उक्ति व्याकरणतत्र के मुनियो के प्रामाण्य के विषय मे जितनी सटीक है, सभवत उतनी ही वृहत्त्रयी के महाकवियो के सन्दर्भ से भी रबथरी उपग्ती है। परम्परागत पण्डित समाज मे प्रचलित अधोलिखित सूक्ति इसी तथ्य की पुष्टि की ओर सेट करती है -- तावद्‌ भाभारवेभति यावन्माघस्य नोदय । उदिते नैषधेकाव्ये क्व माघ क्‍्व च भारवि;्र ॥। लोकजीवन मे. प्रचलित विभिन्‍न कल्पनाओ की ऊंयी उडानो का जितना बहव्घि चित्रण नेषधीयचरित मे उपलब्ध हे, उतना अन्यत्र किसी भी एक ग्रथ मे उपलब्ध नहीं होता। साथ ही लोकोत्तर चमत्कारिक तथ्य, ध्वनि रस भाव, पदलालित्य, दर्शन, व्याकरण एव अन्य शास्त्रो के बहुविध प्रसगो सं रामन्वित होने के कारण भी नैषधीपचरित महाकाव्य सभी महाकाव्यो मे सर्वे ठ माना जाता है। इसके रचयिता महाकवि श्रीहर्ष है।' ं सस्क्‌त साहित्य मे श्रीहर्ष नाम के अनेकों विद्वान समादृत है, परन्तु “नैषधीयचरितम” का र्चयिता कौन श्रीहर्ष है? इस तथ्य की विवेचना के लिए यहाँ ऐतिहासिक चर्चा करना समीचीन होगा। तजौर मे प्राप्त नैषधीयचरित ग्रथ की पुष्पिका मे कालिदास को नैषधीयचरित का लेखक कहा गया है।” परन्तु रघुवशादि रचयिता कालिदास (ई०पू० प्रथम शताब्दी) इसके रचनाकार नहीं हो सकते, क्योकि उनके एव श्रीहर्ष (बारहवीं शताब्दी) के समय मे बारह सौ वर्षो का अन्तराल है, और अन्य कोई और कालिदास ऐसे ग्रथ का रचयिता कैसे माना जा सकता है। प्राय ग्रथ को प्रतिष्ठित कररे के तिए भी यदा कदा ग्रथो को कालिदास निर्मित कह दिया जाता है जैसे फतिपय विद्वान घटफर्पर च्गप्य फो भी प्रसिद्ध कालिय्।स की रचना मान लेते है। ऐतिहासिक तिथि क्रम मे संस्कृत साहित्य मे प्रमुख रूप से ६'फादश श्रीह्षों का प्रसग मिलता है जो निम्नलिखित है -- १ सर्वप्रथम वर्धनवश के राजा हर्षवर्धन, जो कि थानेश्वर (स्थाणीश्वर) तथा कन्नौज के राजा प्रभाकरवर्धन के पुत्र और राज्यवर्धन के छोटे भाई है, को सस्कृत जगत मे हर्ष, श्रीहर्ष एवं हर्षदेव आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। इनका राज्यकाल 606 ई० से 647 ई० तक माना जाता है। ये विविध शास्त्रो के ज्ञाता होने के साथ-साथ विद्वान, कवि, नाटककार तथा प्रसिद्ध विद्वान कवियो के आश्रयदाता थे। मातग, दिवाकर, बाण, मयूर आदि इनके आश्रय प्राप्त कवि थे।* इन्हीं 1. यहाँ पर “श्री” शब्द उनके नाम का ही अश है न कि आदरार्थे लगाया गया शब्द, यदि ऐसा न होता तो नैषधकार स्वय 'नैषधीयचरितम्‌' मे कवित्रशस्ति श्लोक-4 में “श्री श्रीहर्षकवे कृति कृतिमुदे तस्याभ्युदीयादियमू” क्यों कहते। 2... “इति श्रीमहाकाव्ये कालिदासकृतौ नैषधे अष्टम सर्ग समाप्त “-- तजौर --1, 9 2560, ९०-3555 3. (&) अहो प्रभावो वाग्देव्या यन्मातगदिवाकरा | श्रीहर्षस्याभवन्‌ सभ्या. सभाबाणमयुरयों || - राजशेखर (शाडर्गधरपद्धति से लदघृत) (8). श्रीहषदिधाविकादीनामिव धनमेकाव्यप्रकाश (प्रथम उल्लास) झलकीकरटीका पृ० 8 -9




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