धर्मचंद्रिका | Dharmchandrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म चिज्ञान कल. के थे । ' की पद धर्म विज्ञान: 1: पद हि कल ाण # भी को भार -प्रकृतिपर. रहनेसे ये पाप या पुंरायंकें भागी नहीं होते हैं, किन्तु मानव योरनिंपें: झानेपर अंहड्ार बढ़जानेसें ..जीव' स्वाधीर्न होकर काम करने लगता है इसलिये वह झपने कामका.: जिम्मेवॉर्ट हो जाता है इसलिये मनुष्य योनिसे ही धर्मका . साक्षात्‌ सम्बन्ध शास्त्रोमें वर्णित है. जैसा कि महाभारतमें-- . . ... मानुषेषु मद्दाराज ! घम्मौधघ्म्मों प्रवर्तत: । का न तथाउन्येषु भूतेषु मनुष्यरहितेष्विह ॥ है . उपभोगैरपि व्यक्त नात्मान॑ सादयेन्नर: । चाणडालत्वडपि मानुष्यं सबंधा तात ! शाभनमसू ॥ .... इयं दि योनि: प्रथमा यां: प्राप्य, जगतीपते ! । '. आत्मा वे शक्यते त्रातुं कम्म॑ंभिः झुभलक्षणे: ॥ ... -.. . जिस. प्रकारकी म जुष्यमें 'घर्म्माघम्मेकी ठीक. ठीक. प्रचृत्ति होती. है;-मजुष्यसे भिन्न झन्यजीवोम वैसी -नहीं. होती. -झत्यन्त: दीन होने. पर भी मजुष्य को. दुः्खोंसे -घबड़ाना न चाहिये; क्योंकि चौराडाठकी भी मनुष्ययोनि झन्य पशु झादि योनियोंसे बहुत ही उत्तम है । यही पक योनि है जिसको प्राप्त करके मनुष्य शुभ कम्मॉको: करता इुश्रा झन्तमें मुक्तिपद्को . प्राप्त हो सकता है। इली बातको सांख्यकारि: काके भाष्यमें श्रीमान्‌ इंश्वरकृष्णने भी कहा है-- . .. :.. .. घम्मेंस गमनमूदु ध्वमू ।. , .. . ग्मनमधघस्ताद्धवत्यंघर्म्में ॥। १ जीव घम्मेके द्वारा ऊद्द व्वगति झौर झाघमंके द्वारा झधघोगतिको, घ्नाप्त होता है.।. पंशु: झादि जीव प्रंछतिके नियमाजुसार. पसिचालित दोनेंसे पाप पुरयके फलभागो - नहीं होते हैं 1. -वे सम्टि प्रकति के स्वाभोविकं नियमाजुसार क्रमशः उन्नत होते हैं इसलिये मनुष्यसे इतर, सब जीचोकी उत्पत्ति श्र उन्नतिकी पक सीमा है; झर्थात्‌: कितने जन्मोमे वृक्ष छादि जीव झपने झाधिकारकी पूर्णताको' प्राप्त होकर




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