धोखा धड़ी | Dhokha Dhadi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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गाल्सवर्दी -Galswordy
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ललिता प्रसाद सुकुल - Lalita Prasad Sukul
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुश्य 93 ] 'घोखाघड़ों
जिल--यह शायद इसी लिये है कि झम्सा कहती हैं
कि, “भों जो हस लोग हैं सो वे थोड़े
हुं तो उन्हें भी ऐसा क्यों नहीं हो जाने
देते ?
हिलक्रिस्ट--ये नहीं हो सकता |
जिल--क्यीं ?
हिलक्रिसट--रदन सहन का ढंग जानना सहल नहीं ।
में पीडियां लग जाती हैं। ऐसे लोग तो
उंगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ते है ।
जिल--पर यदि उन्हें पहुँचा दिया जाय तो वे उंगली
वी इच्छा हो नहीं करंगे । पर इस सब
““योखाघड़ी” की आवश्यकता ही क्या है ?
रिलक्रिस्ट-'घोखाघड़ो” ! तुझे ये महावरे .कहां
से सिल जाते हैं ?
शत
जिल--दादा ! जरा काम की टोने दो ।
हिलक्रिस्ट--पे जीवन ही युद्ध है । इसमें झागे बढ़ने
चाले तमाम तरह के झ्दमियों में और
प्
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