धोखा धड़ी | Dhokha Dhadi

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गाल्सवर्दी -Galswordy

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ललिता प्रसाद सुकुल - Lalita Prasad Sukul

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुश्य 93 ] 'घोखाघड़ों जिल--यह शायद इसी लिये है कि झम्सा कहती हैं कि, “भों जो हस लोग हैं सो वे थोड़े हुं तो उन्हें भी ऐसा क्यों नहीं हो जाने देते ? हिलक्रिस्ट--ये नहीं हो सकता | जिल--क्यीं ? हिलक्रिसट--रदन सहन का ढंग जानना सहल नहीं । में पीडियां लग जाती हैं। ऐसे लोग तो उंगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ते है । जिल--पर यदि उन्हें पहुँचा दिया जाय तो वे उंगली वी इच्छा हो नहीं करंगे । पर इस सब ““योखाघड़ी” की आवश्यकता ही क्या है ? रिलक्रिस्ट-'घोखाघड़ो” ! तुझे ये महावरे .कहां से सिल जाते हैं ? शत जिल--दादा ! जरा काम की टोने दो । हिलक्रिस्ट--पे जीवन ही युद्ध है । इसमें झागे बढ़ने चाले तमाम तरह के झ्दमियों में और प्‌




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