आश्रमवासियों से | Aashramavasiyon Se
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
73
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ्काश-ददयन श्३
करके मैं ही था । उस विषय की पुस्तकें मंगाई गई ।
भाई शंकरलाल ने तो इतनी जानकारी कर ली कि
जितने से उन्हें संतोष हो जाय । मु्ते फुसंत न मिली ।
सन् ३०-३१ में काकासाहब का सत्संग मिला।
उन्हें इस विपय का भ्रच्छा ज्ञान है । पर मैंने उनसे
उसे न पाया । इसलिए कि उस वक्त मुझे सच्ची
जिज्ञासा न थी । १९३१ में कारावास के श्राखिरी महीने
में यकायक शौक जगा । बाह्य दृप्टि से जहां सहज ही
ईदवर रहता हो उसका निरीक्षण मैं क्यों न करूं ?
पथु की तरह ग्रांखें महज देखा करें, पर जिसे देखें वह
विशाल दृद्य ज्ञानतन्तु तक न पहुंचे, यह कैसा दयनीय
है ? ईदवर की महान् लीला के निरखने का यह सुयोग
केसे जाने दिया जाता ? यों श्राकाश्न को पहचान लेने
को जो तीत्र इच्छा उपजी उसे भ्रब छिपा रहा हूं श्रौर
यहांतक आया हूं कि श्राश्रमवासियों को मेरे मन में
उठनेवाली तरंगों में साभी बनाये बिना श्रब नहीं रहा
जाता |
हमें बचपन से यह सिखाया गया है कि हमारा
शरीर पृथ्वी, जल, आकाश, तेज श्रौर वायु नाम के पंच-
महाभूत का बना हुभ्रा है । इन सभीके विषय में हमें
थोड़ा-बहुत ज्ञान होना ही चाहिए, फिर भी इन तत्त्वों
के विषय में हमें बहुत थोड़ी जानकारी है । इस समय
तो हमें आकाश के विषय में ही विचार करना है।
आकाश के मानी हैं अवकाश--खाली जगह ।
हमारे दारीर में श्रवकाश न हो तो हम क्षणभर भी न
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