प्रवासी जीव - जंतु | Pravaci Jeev Jantu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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करना पडता हु । उन्हे गहरी नदिया पार करनी होती है, ऊचे पर्वत
लाघने होते दै और गर्म मरुस्थलो को पार करना होता है। जलचरों
को यह नही एरना ण्डता । पर अनेक बार उन्हें तेज जलवाराओ के
बहाव के विपरीत तैरना होता है । सालमन जैसी मछलियों को, जो
नदियों मे बहाव के विपरीत यात्रा करती है, ऊची-ऊची छलागे लगा-
कर जाप्रपातो ओर वावो को पार करना होता है । साथ ही मछुओ
के जालो और शिकारी जीवों से भी बचना होता है । नभचरो को
अपेक्षाकृत सबसे कम कठिनाइयों का सामना करना पडता है यद्यपि
तूफान, वर्षा तथा ऊची इमारते, टेलीविजन टावर भादि उनकी
यात्रा मे वावा पहुचाते है । इसीलिये थल पर रहने वाले जीव-जन्तुओ
की प्रवास-यात्र'ये सबसे छोटी और पक्षियों की सबसे लम्बी होती है ।
पक्षी सागर पर भी लम्बी-लम्बी, कई हजार किलोमीटर लम्बी, यात्रा
कर लेते है ।
कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि पक्षियों और स्तनधारी प्राणियों मे
यह गुण उस समय विकसित हुआ था जब पृथ्वी पर अतिम हिमयुग
आया था । जब से पृथ्वी बनी, उसकी जलवायु कई बार ठडी हुई और
कई बार फिर गम हो गई । जब वह ठडी हो जाती थी, उसके अधिकतर
भाग बर्फ से ढक जाते थे । आज से लगभग 30 हजार वर्ष पहले भी
धा वो, खासतौर से उत्तर ध्यव की ह्मनदिया (ग्लेशियर) काफी नीचे
आ गई थी । उस समय आज के यूरोप गौर उत्तर अमेरिका का अधि-
कतर भाग बफं से ढक गया था । उस समय ठड की ऋतु मे भयकर
ठड हो जाती थी। साथ ही भोजन भी कम हो जाता था । इसलिए
विभिन्न विस्मो के जीव-जन्तु ठड और भूख से बचने के लिए दक्षिण
की ओर आ जाते थे । गर्मी की ऋतु आने पर मौसम कुछ सुखद हो
जाता था तो वे फिर उत्तर की ओर लौट जाते थे । ऐसा हर सर्दी और
गर्मी मे, हजारो साल तक, होता रहा । इतने समय मे जीव-जन्तुओ की
कई पीढिया बीत गई । इसलिए जीव-जन्तुओ को सर्दी मे गर्म प्रदेशों में
आने की तथा गर्मी के दिनो मे लौट जाने की आदत हो गई। यह आदत
पीढी-दर-पीढी चलती रही और आज भी चल रही है ।
पर ज्यादातर वेज्ञानिक यह मानते है कि प्रवास-घात्रा की आदत
आखिरी हिमयुग से कही पुरानी है । जीव-जन्नु आखिरी हिमयुग से
पहले भी प्रवास यात्रा करते थे । साथ ही ऐसे जीव जन्तु भी प्रवास-
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