वक्ष - परीक्षा | Vaksha Pareeksha

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Vaksha Pareeksha by एम. भट्टाचार्य - M. Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्‌ बल्त-परीक्षा चकषोष्पि ( 5८070 ) कहते हैं और इस वश्नोस्थिके दोनों ओर, दाहिनेन्वायें पसलियों ( एए05 ) का सिलसिल है | ये पसलियाँ बारद- बारहके हिसाबसे दोनों ओर रहती हूं। वश्नोस्थिके गलेके गडहेके नीचेसे, छाती के बीचमें होती हुई, पेटतक चली आई हैं। वत्तोस्थिके दीन सड ई-ऊपयवाला चौड़ा माग ऊर्ड-खंड ( ए:2एजिघाा ); फिर मध्य-खंड कु लम्बा भाग ( एः3505/टाएपाए ) ओर सबके नीचेवात्ता भाग अग्र-संड ( 30 फाए00९55 ) है) बल्लोस्थिपर कुछ गड़हे या स्थालक ( थि८€ ) होते हैं और इन स्थालकॉके नीचे दौीनीं ही ठरफ मात सात ऐसे स्थालक होते हैं, जिनपर पसलियो के सिरेपरकी छपास्थिकी नोक रहती है। इनपर ही पसलियोंका सिरा जुड़ता है। यह इस तरह कि ऊपरी सडसे पहली पसलीकी उपास्थि, ऊपरी और विचले सड जहाँ मिले हैं, वहाँ दूसरी पसलीकी उपास्थि और बीचवाले खडके बाखिरी भागसे सीसरी, चौथी, पाँचवो मोर छठी पंसलीकी उपास्यि मिलती है।. सातवीं पसलीकी उपास्थि मध्य ओर अग्रखड जहाँ मिले हैं, उस जगददपर है।. पदले ही बता चुके हैं, कि दोनों ओर बारद्द बारद पसलियाँ होती हैं । सबसे ऊपर और सबसे नीचेवाली पसलियाँ दूसरी पसलियॉकी अपेक्षा बहुत छोटी होती हैं, सारांश यद्द कि दाहिने बारह और बायें बारदह--इस तरह २४ पसलियाँ होती हैं, जिनमें बक्षके ऊपरसे थारम्मकर दाहिने और बायेंकी सात पसलियाँ बचोस्थिसे जुड़ी हैं, ये ही वास्तविक पजरास्थि, पशुंका या पसलियाँ ( घएट द1258 ) हैं और बाकी नकली पसलियाँ ( शि&्ट हा७5$ ) कइलाती हैं। दाहिने-बायेंकी आठवीं; नवों सौर दसवों पसलियाँ चक्षोरिथसे नहीं मिली हैं, बल्कि सातवीं पसलीस मिली हैं, बाकी ग्यारइवीं और बारहवीं किसीसे न मिलकर एकदम खुली हुई-्सी हैं । इसलिये इनका एक नाम निराघार पसलियाँ ( फि०्वाए एए05 ) भी है। वद्चोस्थि और पसलियोंके बीचमें वक्षास्थिसे जुड़ा एक कार्टिलिज




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