समुद्री पक्षी | Samudri Pakchi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आसमान में खो गया | वहां तो स्वर्ग जैसा था। पृथ्वी से ऊपर उठते समय उसका शरीर चमकने लगा था । यहां वो पृथ्वी की अपेक्षा दुगनी गति से उड़ सकता था । अब वो आराम से ढाई सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता था। स्वर्ग में कोई सीमायें नहीं थीं । यहां पर कोई एक दर्जन चीलें होंगी। उसे वहां एकदम घर जैसा लगा । रेत पर उतरने के लिए उसे अपने पंखों को धोड़ा-सा मोड़कर ब्रेक लगाना पड़ा। बाकी चीतें बिना अपने पंख को हिलाए ही उतर गयीं । उन्हें अपने शरीर और उड़ान पर गजब का नियंत्रण था। जौनाथन इतना धक गया था कि वो किनारे पर खड़ा-खड़ा ही सो गया | यहां पर उसे बहुत कुछ सीखने को था। धरती और यहां पर केवल एक अंतर था । यहां पर चीलें उसके जैसी ही सोचती थीं । उनमें से सभी को उड़ने में असीम आनंद आता था । उनके जीवन के उद्देश्य भी एक से धे-उड़ने में पारंगत होना । वे सब-की-सब बेहद कुशल चीलें थी और वो रोजाना घंटों उच्च-स्तरीय उड़ानों का अभ्यास करतीं थीं । ऊब अपने कबीले को जौनाथन लगभग भूल चुका था। एक दिन उसने अपने साथी से पूछा यहां इतनी कम श्वीलें क्यों हैं? पृथ्वी पर तो सैकड़ों-हजारों समुद्री चीलें थीं । हजारों-लाखों चीलों में से एक ही यहां तक आ पाती है । तुम उनमें से एक हो जौनाथन । हम लोगों ने न जाने कितने घाटों का पानी पिया और फिर यहां पहुंचे । तुमने एक बार में ही इतना कुछ सीख लिया इसीलिए तुम्हें यहां आने के लिए हमारी तरह जन्मों के जंजाल से नहीं गुजरना पड़ा एक दिन रात के समय जौनाथन ने हिम्मत बटोरी और थी




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