गीत गुंजार | Geet Gunjar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीत दे 2 रकम
हा प कर मिट किडि छछ
उमा
वद्ध मान
[वर्जे --महावीर, महावीर, महावीर, महावीर. ]
वर्द्धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान ॥द्नू_वा।
भव सागर से चाहे श्रगर तरना ,
दीन-दुखियो के सकट सदा हरना ।
सेवा जाति व देग की नित करना ,
नाम हृदय मे एक यहीं घरना ॥।
वर््धमान, वर्द्धमान, वद्धमान, वरद्धमान ॥
दुनियाँ फानी है, दिल न जरा भी लगा,
पाप कर्मों को सरल से दे तू मगा।
ज्योति सत्य श्रहिसा की जग मे जगा ,
हो कर मस्त प्रमु का सदा नाम गा ॥
वर््धमान, वर््धमान, वर््धमान वर्द्धमान ॥
चक्कर योनि चौरासी मे खाता रहा
नाना दुख मनुज तू , उठाता रहा ।
जीवन श्रपना श्रमोलक गंवाता रहा
घर्मी वन कर न यह रट लगाता रहा ॥।
वर््धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान, वद्ध॑मान 1!
पूर्व सचित पुण्य हुमा जव उदय ,
पा के जन्म मनुज का हुआ तू झ्रभय |
जीवन सफल वनाले यही है समय ,
“या” जग मे फैला जिससे हो तेरी जय ॥
वई्डमान, वद्ध मान, वरद्ध मान, वद्ध मान!
च्््ध
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