गीत गुंजार | Geet Gunjar

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Geet Gunjar by किर्तिचंद्र जी महाराज - Kirtichandra Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीत दे 2 रकम हा प कर मिट किडि छछ उमा वद्ध मान [वर्जे --महावीर, महावीर, महावीर, महावीर. ] वर्द्धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान ॥द्नू_वा। भव सागर से चाहे श्रगर तरना , दीन-दुखियो के सकट सदा हरना । सेवा जाति व देग की नित करना , नाम हृदय मे एक यहीं घरना ॥। वर््धमान, वर्द्धमान, वद्धमान, वरद्धमान ॥ दुनियाँ फानी है, दिल न जरा भी लगा, पाप कर्मों को सरल से दे तू मगा। ज्योति सत्य श्रहिसा की जग मे जगा , हो कर मस्त प्रमु का सदा नाम गा ॥ वर््धमान, वर््धमान, वर््धमान वर्द्धमान ॥ चक्कर योनि चौरासी मे खाता रहा नाना दुख मनुज तू , उठाता रहा । जीवन श्रपना श्रमोलक गंवाता रहा घर्मी वन कर न यह रट लगाता रहा ॥। वर््धमान, वर्द्धमान, वर्द्धमान, वद्ध॑मान 1! पूर्व सचित पुण्य हुमा जव उदय , पा के जन्म मनुज का हुआ तू झ्रभय | जीवन सफल वनाले यही है समय , “या” जग मे फैला जिससे हो तेरी जय ॥ वई्डमान, वद्ध मान, वरद्ध मान, वद्ध मान! च्््ध




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