जैनधर्म जीवन और जगत | Jain Dharam Jivan Aur Jagat

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Jain Dharam Jivan Aur Jagat by गणधिपति तुलसी - Gandhipati Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान है भमालोक अगम का दे सब प्रश्नों का समाधान तत्त्व-मीमासा के ठोस घरातल से ही उपलब्ध हो सकता है । भाचार-दर्शन और तत्त्व-मीमासा के पारस्परिक सबध को स्पष्ट करते हुए ढॉँ० राघाकृष्णन लिखते हैं कि--“कोई भी आचार शास्त्र तत्त्व-दर्शन पर या चरम-सत्य के एक दार्ध॑निक सिद्धात पर अवश्य आश्रित होता है । चरम सत्य के सबध मे हमारी जैसी अवधारणा होती है, उसके अनुरूप ही हमारा आचरण होता है । दर्शन और आचरण साथ-साथ चलते हैं । वास्तव मे जब तक तत्त्व के स्वरूप या जीवन के आदर्श का बोघ नहीं हो जाता, तब तक आचरण का मूल्याकन भी सभव नहीं । क्योकि यह मुल्याकन तो व्यवहार या सकल्प के नतिक आदर्श के सदर्भ मे ही किया जा सकता है । यही एक ऐसा बिंदु है, जहा तत्व-मीमासा और आचार-दर्शन मिलते हैं । अत दोनो को एक-दूसरे से अलग नही किया जा सकता । मानवीय चेतना के तीन पक्ष हैं-- (१) ज्ञानात्मक (२) अनुभूत्यात्मक (३) क्रियात्मक । अत दार्शनिक अध्ययन के भी तीन विभाग हो जाते हैं-- (१) तत्त्व-दर्शन (२) धर्मं-दर्शन (३) आचार-दर्शन । इन तीनो की विषय-वस्तु भिन्न नही है । मात्र अध्ययन के पक्षो की भिननता है । जब व्यक्ति किसी ध्येय की पुति के लिए विशिष्ट प्रकार का प्रयत्न करता है, तब लक्ष्य के स्वरूप, उसकी क्रियाशीलता गौर का्ये-पद्धति इन सब पक्षो पर समग्रता से विचार किया जाता है । इसलिए थे तीनो जुडे हुए हैं । जीवन के विभिन्‍न पक्ष होते हुए भी एक सीमा के बाद तत्त्व-दर्शन, घम्म-द्शन और माचार-दर्शन तीनो एक बिन्दु पर केन्द्रित हो जाते हैं। क्योंकि जीवन और जगत्‌ एक ऐसी सगति है, जिसमे सभी तथ्य इतने सापेक्ष हैं कि उन्हें अलग-अलग नही किया जा सकता । लगभग सभी भारतीय दर्शनों की यह प्रकृति रही है कि आचार- शास्त्र को तत्त्व या दर्शन से पृथक्‌ नही करते । जैन, बौद्ध, वेदान्त, गीता आदि दर्शनों मे कही भी तत्त्व और जीवन-व्यवहार मे विभाजक रेखा नहीं मिलती । जन विचारको ने तत्त्व, दर्शन और आाचार--जीवन के इन तीनों पक्षो को अलग-अलग देखा अवश्य है, पर इन्हें अलग किया नही । ये सभी मापस में इतने घुले-मिले हुए हैं कि इन्हें एक दूसरे से अलग करना सभव भी नही है । बाचार-मीमासा को धघ्मे-मीमासा और तत्त्व-मीमासा से न अलग किया जा सकता है गौर न उनसे अलग कर उसे समभझा जा सकता 3. ,




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