मोक्षमार्ग प्रकाशक भाग २ | Mokshmarg Prakasak Part Ii

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Mokshmarg Prakasak Part Ii by श्रीमान ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Shriman Bramhchari Seetalprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) बोकेट दो भतीजे हैं निनको यह प्रूत्र प्रमान ही. मानते हें और उन्हींके पाप्त रहते प्हते और खाते पीते दें । यह दोनों भाई बड़े सुयोग्य, सुपात्र, सुशीक और धर्मेप्रेमी सज्जन हें । ये भपने पृजय चचानीको कभी किसी घम्मेकाब या दव्य दान करनेमें बाघक नहीं होते । न उनके घनकी कभी इच्छा करते दें, क्यों कि पुण्योदयसे यहांकी बिराद्रीमें उनका घर चोटीका गिना जाता है। जिसप्रकार यह दोनों भाई भक्त नीकों पितातुल्य मानकर तत्परतासे सेवा करते हैं वेसे ही उनकी पूज्य मातानी और घममेपत्नियां भी इनकी यथा- योग्य दल ऋरनेमें कभी भालस्य नहीं मानतीं । यद्यपि वृद्धावस्थामें उत्पन्न होनेवाले रोगोंके कारण भवरय भक्तजीका शरीर भस्वस्थ औीर चित्त खेदखिन्नसा रदता है तो मी इनकी घमेप्ताघना और दानवृत्तिमें कोई दिथिकता नहीं भाई है । एकवार श्री ० बह्म चारी सीतरुप्रसादनी यहां पघारे थे, उनके उपदेशपे आपने बह्मचारीजी द्वारा संपादित श्री मोक्षमाग प्रकाशक द्वितीय भागको मुद्रित करके जेन मित्रके ३६ वें वषके आइकों को मेट देनेकी स्वीकारता देते हुये कद कि 'स््र० पे० टोडरमलनीके कथनके दोषांशका जेन समाजमें प्रचार होनावे और मोक्ष मागेका सष्चा स्वरूप प्रकाशित हो-यह मेरी सांतरिक भावना है ।” तद- नुसार बह अन्थ भापकी जोरसे छपाया गया है | प्रतिप्तमय हमारी मनोकामना यड़ी है कि भक्तनी चिरायु हो और घमेध्यानमें विरोष छीन रहें। ता० १९-११-३२. -भोछानाथ दरखशशा, बुलन्द्यदर ।




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