अश्विनौ देवता | Aaqs-vinau Devataa
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
466
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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*परि इ ! किया है । केवल ' मूधनि ! पद का थे. ( ३ि0्86 ) बुनियाद
तलभाग, तलहटी ऐसा भूर्मिति में दोनेवाला अथ जो कोशों में है वही यहां लेना
होगा । प्रथ्वी भर आकाशकों दो चक्रोंके रूपमें वेदमें अन्यन्रभी बताया है ।
यो अश्षणव चक्रिया दचीमिः विप्वक््तस्तंभ प्रथिवीं उत थां ।
( तर. १०८९४ ) जैस अक्ष से गाड़ी के दोनों पद़ेये वेसेही प्रथ्वी और
आकाश उस प्रभु ने जोड रखे हैं । यहां भी प्रथ्वीकों रथका एक चक्र आर
आकाश की दूसरा चक्र माना है । ये कवि उत्तरध्व के स्थानमें विद्यमान होंगे
आर प्रयक्ष दीखनेवाला साक्षात्कृत दृश्य दी वर्णन करते होंगे, क्योंकि यहाँकें
कवि ऐसा वणन करने में असमथ हो होंगे ।
[२] (ऋ० १३४१-१२)
हिरण्यस्तूप आड्िरिसः । जगती; ९.१२ त्रिष्टुप् ।
त्रिधिन नो अद्या भंवतं नवेद्सा विश्व याम॑ उत राहिरंखिना ।
न # ९ ०७, है 4 ०५. || के #१ # #
युवोहिं यन्त्र हिम्येव वाससो 5भ्यायसेन्या भवतं मनीपिर्गि! ॥।
१२त्रिः । चित । न: । अद्य । भवतम् । नवेद्सा ।
विड्यु! । वामू। याम! । उत । राति। । अशिना ।
गो! । हि । यन्त्रम । हिम्याइइव । वाससः ।
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भडआयसेन्या । मवतम । मनोपिडाभ ॥१॥।
कक. फल. बकुदददगन
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१२ अन्वय:- नवेद्सा अश्चिना | अद्य त्रि: चित् न: भवत, वां याम: डत
राति: बिभुः; वासस: हिम्पा इवच युवो। यंत्र हि, सनीधिभि: भभ्यायसेन्या
भचतस् ॥११1
१२ अथ- ( नवेद्सा भशिना ) हे जानी भश्चि दूंवो ( भय ) भाज तुम
दोनों ( न्रि: चितू नः भवते ) तीनों बार हमारे ही होकर रहो | ( वां याम: )
सुमन दोनों का रथ ( उत्त राति: विभुः ) भोर दान बड़ा होता है; ( वाससः
हिस्पा दव ) जेसे कपड़े का सर्दी से सम्श्रन्घ अत्यन्त घनिष्ट है वेसे ही (युवोः
यन्त्र हि ] तुम दोनों का नियंश्रण हम से घनिष्ठ होता रहे, ( मनीधिभिः
अभ्यायंसेश्या भव्रत ) मननशील लोगों को तुम दोनों सहज हो से प्राप्त
होते रहो।
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