अश्विनौ देवता | Aaqs-vinau Devataa

Aaqs-vinau Devataa by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 5) *परि इ ! किया है । केवल ' मूधनि ! पद का थे. ( ३ि0्86 ) बुनियाद तलभाग, तलहटी ऐसा भूर्मिति में दोनेवाला अथ जो कोशों में है वही यहां लेना होगा । प्रथ्वी भर आकाशकों दो चक्रोंके रूपमें वेदमें अन्यन्रभी बताया है । यो अश्षणव चक्रिया दचीमिः विप्वक्‍्तस्तंभ प्रथिवीं उत थां । ( तर. १०८९४ ) जैस अक्ष से गाड़ी के दोनों पद़ेये वेसेही प्रथ्वी और आकाश उस प्रभु ने जोड रखे हैं । यहां भी प्रथ्वीकों रथका एक चक्र आर आकाश की दूसरा चक्र माना है । ये कवि उत्तरध्व के स्थानमें विद्यमान होंगे आर प्रयक्ष दीखनेवाला साक्षात्कृत दृश्य दी वर्णन करते होंगे, क्योंकि यहाँकें कवि ऐसा वणन करने में असमथ हो होंगे । [२] (ऋ० १३४१-१२) हिरण्यस्तूप आड्िरिसः । जगती; ९.१२ त्रिष्टुप्‌ । त्रिधिन नो अद्या भंवतं नवेद्सा विश्व याम॑ उत राहिरंखिना । न # ९ ०७, है 4 ०५. || के #१ # # युवोहिं यन्त्र हिम्येव वाससो 5भ्यायसेन्या भवतं मनीपिर्गि! ॥। १२त्रिः । चित । न: । अद्य । भवतम्‌ । नवेद्सा । विड्यु! । वामू। याम! । उत । राति। । अशिना । गो! । हि । यन्त्रम । हिम्याइइव । वाससः । ५ ९ # क्न्ड भडआयसेन्या । मवतम । मनोपिडाभ ॥१॥। कक. फल. बकुदददगन ञ.'टठ 2 छिप १२ अन्वय:- नवेद्सा अश्चिना | अद्य त्रि: चित्‌ न: भवत, वां याम: डत राति: बिभुः; वासस: हिम्पा इवच युवो। यंत्र हि, सनीधिभि: भभ्यायसेन्या भचतस् ॥११1 १२ अथ- ( नवेद्सा भशिना ) हे जानी भश्चि दूंवो ( भय ) भाज तुम दोनों ( न्रि: चितू नः भवते ) तीनों बार हमारे ही होकर रहो | ( वां याम: ) सुमन दोनों का रथ ( उत्त राति: विभुः ) भोर दान बड़ा होता है; ( वाससः हिस्पा दव ) जेसे कपड़े का सर्दी से सम्श्रन्घ अत्यन्त घनिष्ट है वेसे ही (युवोः यन्त्र हि ] तुम दोनों का नियंश्रण हम से घनिष्ठ होता रहे, ( मनीधिभिः अभ्यायंसेश्या भव्रत ) मननशील लोगों को तुम दोनों सहज हो से प्राप्त होते रहो।




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