अलापपद्धति | Alapapaddhati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमद देवसेनाचार्य - Shrimad Devasenacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७
४० सर्वेथा शब्द किसका वाची है २४ १६४
१४१ सर्वेथा झचेतन के पक्ष मे सकल चतन्य का
शभ्रभाद र्४ २६५,
१४२ जीव को सवेथा सूत्तें पक्ष मे मोक्ष का प्रसाव २४ श्द्प
४३ जीव को सवेधा श्रमूर्त के पक्ष मे ससार का
अ्रभाव २४ १६
१४४-१४४५ सवधा एकप्रदेश तथा से था श्रनेकप्रदेश
मानने में दोष श्् १६६
१४६-१४७ स्वंधा शुद्ध तथा श्रशुद्ध मानने मे दोष राप्र १६६-१६७
र४िप उपचरित के एकान्त पक्ष मे श्रात्मज्ञता का
प्रभाव 44 २६७
१४९ झ्रनुपचरित के एकान्त पक्ष मे सर्वेज्ञता का
शप्रभाव रू १६७
नय योजना २४-२७ १६८-१७६
(गाथा १०) नानास्वमाव वाले द्रव्य को प्रमाण से
जानकर, सापेक्ष सिद्धि के लिये नयो से
युक्त करना चाहिये र्श १६८
१५०-१४५७ नयो द्वारा भ्रस्ति, नास्ति, नित्य, श्रनित्य,
एक, श्रनेक, भेद, श्रमेद स्वभावो की
सिद्धि २५-२६ १६८-१७०
र्प्र्द भव्य व झभव्य स्वभाव पारिणामिक हैं २६ १७१
१६० कमें, नोकमें भी चेतन-स्वभाव वाले हैं २६ १७१
१६२ जीव भी श्रसदुभुत-व्यवहार नय से भ्रचेतन है. २६ १७३
६४ जीव भी झ्रसदुभ्ुत-व्यवहार नप से मू्तें है २६ १७३
१६६ पुदुगल उपचार से श्रमूर्त है २६ १७४
रद घ्मं भ्रादि द्रव्यो के भी एकप्रदेश स्वभाव २६ १७६४
१७० पुद्गल परमारणु के उपचार से नानाप्रदेशत्व है. २७ १७६
१७१ कालाणु के उपचरित स्वभाव नही है २७ १७७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...