जीवन साहित्य | Jiwan Shaitya

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Jiwan Shaitya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'साहित्य-सेवों श्र भी 'महीं होता । पुराणकारोंने जिस तरह' 'असते, ' श्रेप्सरो 'और अष्यासि भरे हुए स्वरगेकी कल्पना की, श्ूस- तरह ाजकैलके झुपन्यासकार औसेदह्दी किसी बेकार आदमसीकी कल्पना करते हैं जो वकील-वैरिस्टर हुआ हो, जिसने विलायतका सफर किया हो या वसीयतनामेसे जिसको खूब पैसा मिला दो और असके आत्मनि संतुष्ट निरथेक जीवनका सविस्तार वणन करते हैं। जञातिभेद हमारे मनोरथोंमे भी शितना भरा हुआ है कि मध्य श्रेणीके वाहरकी दुनियाको हम नहीं देख सकते । विलकुल गरीब लोगोंका जीवन हमें दयापात्र किन्ठु रदस्यशन्य लगवा है। आीसपके झस वारदइसींगेकी तरह हम सिरपरके सींगोंके गरूरमें छापने पतल पैरोंका तिरस्कार करने लगे हैं, या तिरस्कार करने जितना भी ध्यान हम झुनकी तरफ नहीं देते । कम और पुनजेन्म- के सिद्धान्तका छाश्रय लेकर दम अपने अनाथद्रोहको ढक लेते हैं, झनाथोंकी सेवा तो दूर रही, झुनका स्मरण तक हम नहीं करते । अंग्रेज कवि हुडके 50708 ४ (५८ 59ण+ ( कमीजकां गीत ) की वरावरी कर सके औसा मौलिक काव्य क्या किसीने लिखा है ? ;सपके झस वारहसींगेकी जो हालत अन्तमें हुआी बद्दी ददालत दसारी दमेशा होती 'झायी है । और अब तो विनाश की घटाओें सिरपर मंडरा रही हैं। हमारा लोकप्रिय सादित्य हमारी सामाजिक स्थितिका सप्चन करता है। जो कुछ दिलमें होगा वही होटॉपर आयेगा न ? यरीवोंकी मुश्किलें कौन-कौनसी झनका दुर्द-दुःख क्या है, झनके सवाल कितने पेचीदा और विशाल हैं छिन सब वातों पर जिम्मेदारीके साथ विचार करके असली सवाल हल कंर सके अैसी- योजना « जब होगी तभी गरीबोंके दिलोंमें कुछ 'आशा 'पैदा होगी न ? जिसकी हम रच चुराते हैं झुसीको अगर दानमें छोटीसी सृआी देते हों तो उसे लेते समय लेनेवालेके दिलमें कैसी भावना अत्पन्न होगी ? हसारा




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