सोची - समझी | Sochi - Samajhi

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Sochi - Samajhi by अशोक चक्रधर - Ashok Chakradhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और यही हमारी ज 16 / सांची समझी बज इशारे से उसने बंदर को बुलाया। बंदर गुर्यया- खों खों क्यों, तुम्हारी नजर में तो मेरा कलेजा है? मगरमच्छ बोला- नानानाना ना भैया तुम्हारी भाभी ने ख़ास तुम्हारे लिए सिंघाड़े का अचार भेजा है। बंदर सोचे ये क्या घोटाला है, लगता है जंगल में चुनाव आने वाला है। लेकिन बोला- वाह] अचार, वो भी सिंघाड़े का, यानी नदी के कबाडे का! बड़ी ही दयावान तुम्हारी मादा है, लगता है शेर के खिलाफ चुनाव लड़ने का इरादा है।




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