नैषधियचरितम में उपलब्ध शास्त्रीय सन्दर्भों की मीमांसा | Naishadhiyacharitam Men Uplabdh Shastriy Sandarbhon Ki Mimansa

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Naishadhiyacharitam Men Uplabdh Shastriy Sandarbhon Ki Mimansa  by सुरेश चन्द्र पाण्डे - Suresh Chandra Pande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीहर्ष का व्यक्तिस्त्व एवं कृति च्च रचना कर्तृत्त्व -- संस्कृत का काव्य वाड़मय न केवल ह्ृदयस्पर्शी, बुद्धिचमत्कारकारी एवं सरसता की दृष्टि से महनीय है, अपितु वह विविध ज्ञान विज्ञानराशि का अनुपम कोष भी है। संस्कृत काव्य साहित्य न केवल गुणवत्ता अपितु संख्या की दृष्टि से भी अपरिमित हैं, तथापि अध्ययन अध्यापन की परम्परा में वृहत्त्रयी एवं लघुत्रयी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। व्याकरणतंत्र में प्रचलित “यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्यम्‌” के अनुसार पूर्व की अपेक्षा पर मुनि श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह उक्ति व्याकरणतंत्र के मुनियों के प्रामाण्य के विषय में जितनी सटीक है, संभवतः उतनी ही वृहत्त्रयी के महाकवियों के सन्दर्भ में भी खरी उतरती है। परम्परागत पण्डित समाज में प्रचलित अधोलिखित सूक्ति इसी तथ्य की पुष्टि की ओर संकेत करती है -- तावद्‌ भाभारवेभाति यावन्माघस्य नोदय: | उदिते नैषधेकाव्ये क्व माघः क्व च भारविश ॥| लोकजीवन में प्रचलित विभिन्‍न कल्पनाओं की ऊँची उड़ानों का जितना बहुविध चित्रण नैषधीयचरित में उपलब्ध है, उतना अन्यत्र किसी भी एक ग्रंथ में उपलब्ध नहीं होता। साथ हो लोकोत्तर चमत्कारिक तथ्य, ध्वनि रस भाव, पदलालित्य, दर्शन, व्याकरण एवं अन्य शास्त्रों के बहुविध प्रसंगों से समन्वित होने के कारण भी नैषधीपचरित महाकाव्य सभी महाकाव्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसके रचयिता महाकवि श्रीहर्ष हैं।' संस्कृत साहित्य में श्रीहर्ष नाम के अनेकों विद्वान्‌ समादृत हैं, परन्तु “नैषधीयचरिंतम्‌” का रचयिता कौन श्रीहर्ष है? इस तथ्य की विवेचना, के लिए यहाँ ऐतिहासिक चर्चा करना समीचीन होगा। तंजौर में प्राप्त नैषधीयचरित ग्रंथ की पुष्पिका में कालिदास को नैषधीयचरित का लेखक कहा गया है।' परन्तु रघुवंशादि रचयिता कालिदास (ई०पू० प्रथम शताब्दी) इसके रचनाकार नहीं हो सकते, क्योंकि उनके एवं श्रीहर्ष (बारहवीं शताब्दी) के समय में बारह सौ वर्षों का अन्तराल है, और अन्य कोई और कालिदास ऐसे ग्रंथ का रचयिता कैसे माना जा सकता है। प्रायः ग्रंथ को प्रतिष्ठित करने के लिए भी यदा कदा ग्रंथों को कालिदास निर्मित कह दिया जाता है जैसे कतिपय विद्वान घटकर्पर काव्य को भी प्रसिद्ध कालिदास की रचना मान लेते हैं। ऐतिहासिक तिथि क्रम में संस्कृत साहित्य में प्रमुख रूप से एकादश श्रीहर्षों का प्रसंग मिलता है जो निम्नलिखित हैं -- १... सर्वप्रथम वर्धनवंश के राजा हर्षवर्धन, जो कि थानेश्वर (स्थाणीश्वर) तथा कन्नौज के राजा प्रभाकरवर्धन के पुत्र और राज्यवर्धन के छोटे भाई हैं, को संस्कृत जगत में. हर्ष, श्रीहर्ष एवं हर्षदेव आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। इनका राज्यकाल 606 ई०. से 647 ई० तक माना जाता है। ये विविध शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ-साथ विद्वान, कवि, नाटकंकार तथा प्रसिद्ध विद्वान कवियों के आश्रयदाता थे। मातंग, दिवाकर, बाण, मयूर आदि इनके आश्रय प्राप्त कवि थे।” इन्हीं 1... यहाँ पर “श्री* शब्द उनके नाम का ही अंश है न कि आदरार्थे लगाया गया शब्द, यदि ऐसा न होता तो नैषधकार स्वयं 'नैषधीयचरितम्‌' में कविप्रशस्ति श्लोक-4 में “श्री श्रीहर्षकवे: कृतिः कृतिमुदे तस्याभ्युदीयादियम” क्यों कहते। 2... “इति श्रीमहाकाव्ये कालिदासकृती नैषधे अष्टमः सर्ग: समाप्त: -- तंजौर --४1, ?-2560, 7१०-3555 3. (#) अहो प्रभावो वाग्देव्या यन्मातंगदिवाकराः। श्रीहर्षस्याभवन्‌ सभ्या: सभाबाणमयूरयो: || - राजशेखर (शांडर्गधरपद्धति से उद्धृत) (४). श्रीहषदिर्धावकादीनामिव धनमेंकाव्यप्रकाश (प्रथम उल्लास) झलकीकरटीका पृ० 8 -9




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