धर्मरत्न प्रकरण | Dharamratan Prakaran Bhag - 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लगा कर पात्र चांघना सो; - उससे मिक्षा । आगम में पात्र घघ के
दो किनारे मुद्ठी में पकड़ने के तथा दो कोदनी के पास बांधने के
कड़े हूं, तथा आींपग्रद्िक उपकरण रखना जेसे कि-कटाहक, तुम्च
का ढकन तथा ढोरे आदि ये सब प्रसिद्ध ही हैं। ये सत्र अभी
साघुआं-क आचरित हैं ।
सिकिगनिक्खिवणाई पट्जोसवर्ण हर तिहिपराबतो |
भोयणविदिअनत' एमाई दिविदमल दि (८ ३॥।
मूल का अथ--सीकें में पात्र निक्षेप करना आदि; पयू षणा-
टिक तिथियां का फेरफार, सोलजन विधि का फेरफार आडि बहुत
सी वात (आचरित हूँ ) |
दीका का अथे--सीका याने ढोरे की बनाया हुआ .भाजन
का आवार ! उससे सिक्ष पण करना, अथात् पान बांधकर रखना:
आदि शब्द से युक्तिल्लेप से ( आजकल के'बने हुए लेप से) पात्र
रंगना आदि तथा पु परणादि तिथि परावत्तें -वहां पु पणा यासे
स'चर्सरी पब॑ और आदि दब्द से चातुमासिक लेना | इंस दो का
तिथि परावद्य अथात् तिथि फेर, जो. कि प्रसिद्ध ही है । तथा
भोजन विधि का अन्यत्त्र (फेरफार), जो कि यतिजषन में -प्रसिद्ध
हो है वदद इत्यादि याने कि-पड़जीवनों अब्ययन सीख जाने पर: भी
शिष्य को बढ़ी दीश्ा देना: आदि गीता ने स्वीकृत को हुई
अन्य विविध आचरणाएं प्रमाणभूत ही हैं, ऐसा समझना
क्योंकि व्यचहदार-भाष्य में कद्दा दे कि-झास्त्र परिंक्ञा के बदले
छकाय सं ज़म, पिंडेपणा के बदले उत्तराव्ययन, तथा चुभ्-बपभ
गोपनयोधनशोधि और :पुष्करिंगी के टप्टांत दिये. हैं ।
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