सचित्र मुख -वस्त्रिका - निर्णय | Sachitramukh Vastrika Niranay
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विराजते प्लखाम्भाजे, साधूनां मुखबख़िका
रक्षिका सच्म जन्तूनां, दुरिच्छेद शखिका,;
व्याख्या-भो पाठकाः ! सनातनीय श्वेतास्बरीय जैन यतीनां
साधूनां सुखास्भोजे चदन-कमले, सुखवस्तरिका विराजते शोभते
कीडशा, सुखवस्त्रिका ? उछ्क च,-पगविसंगुलायाय, सोलसंगुल
विच्छिण्णोः चडकार संजुयाय, मुद्दपोती पारिसा दोई ॥ अथांद्
पक विंशत्यंगुला पारिमित दीघो,पोड़शांगुला परिमित।विस्तीणांच
चतुराकारसंयुक्का, पताइशा रूपा मुखवस्त्रिकां चारु दवरकेन
सद्द मुखे वन्ध्यमाना विराजते-शोभते, पुनः कथें भरूता ? सुख
चस्िका बाह्य दृष्ट्या 5 दृष्ट सूचम जन्तूनां-जीवानास् रक्षिका
पालयित्री । पुनः क्थ भ्रूता ? दुरितच्छेद शख्त्रिका, पाप नाशने
परीयसी, आायुध रुपा5स्ति ॥
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