सचित्र मुख -वस्त्रिका - निर्णय | Sachitramukh Vastrika Niranay

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Sachitramukh Vastrika Niranay by शंकर मुनि जी - Shankar Muni Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विराजते प्लखाम्भाजे, साधूनां मुखबख़िका रक्षिका सच्म जन्तूनां, दुरिच्छेद शखिका,; व्याख्या-भो पाठकाः ! सनातनीय श्वेतास्बरीय जैन यतीनां साधूनां सुखास्भोजे चदन-कमले, सुखवस्तरिका विराजते शोभते कीडशा, सुखवस्त्रिका ? उछ्क च,-पगविसंगुलायाय, सोलसंगुल विच्छिण्णोः चडकार संजुयाय, मुद्दपोती पारिसा दोई ॥ अथांद्‌ पक विंशत्यंगुला पारिमित दीघो,पोड़शांगुला परिमित।विस्तीणांच चतुराकारसंयुक्का, पताइशा रूपा मुखवस्त्रिकां चारु दवरकेन सद्द मुखे वन्ध्यमाना विराजते-शोभते, पुनः कथें भरूता ? सुख चस्िका बाह्य दृष्ट्या 5 दृष्ट सूचम जन्तूनां-जीवानास्‌ रक्षिका पालयित्री । पुनः क्थ भ्रूता ? दुरितच्छेद शख्त्रिका, पाप नाशने परीयसी, आायुध रुपा5स्ति ॥




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