कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ | Kamayani Ke Adhyayan Ki Samsyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प् कामायनी के म्रव्ययन की समस्या एँ
भरा जाती है श्रौर श्रथ की विवति मे थोडी कठिनाई होती हे । योजक
चिह्नो के मनमाने प्रयोग से कामायनी की व्यारया में इस प्रकार की
कठिनाई स्थान स्थान पर सामने द्रार्त। है । कामायनी के ममज्ञो को यह
जानकर प्रस नता होगी कि नवीनतम सस्करण म इस दोप का यथेष्ट
परिमाजन कर दिया गया हे।
रसास्वादन की प्रक्रिया मे दूसरा श्रवस्थान हे सबद्ध बिम्बविवान, जो
वास्तव मे झभिवाथ ज्ञान का ही प्रतीक है। भट्टनायक ने इसी को काव्य
का “अभिधा' व्यापार माना है। कामायनी के श्रभिवाथ ज्ञान में भी अन्य
समसामयिक काव्यो की श्रपेक्षा कही अधिक कठिनाई होती हे । इसके अनेक
कारण है--जिनमे प्रमुख है पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग । थे पारिभाषिक
दाब्द प्राय तीन प्रकार के हे--(१) सास्कृतिक, (२) दाझ्निक सौर
(३) मनोव॑ज्ञानिक । इनमे से श्रघिकाश शब्द ऐसे है जिनमे ये तीनो पक्ष ही
एकत्र विद्यमान हे । एक दब्द 'काम' को ही ले लीजिये । उसके सास्कृतिक
अथ की एक दीघ परम्परा है जो बेदो से लेकर पुराणों तक विस्तत हे । इसी
प्रकार दाझानिक अथ की भी , और इधर नवीन मनोविज्ञान का प्रभाव
ग्रहण करने के कारण प्राचीन तथा नवीन मनोवज्ञानिक झर्थों के शभ्रनेक
सुत्र उनमे गुथ गए हे । वास्तव मे इन पारिभाषिक दाब्दो का कामायनी में
इतना प्रचुर प्र साथक प्रयोग है कि इनका सर्वाग श्रध्ययन किये बिना
कामायनी का अ्रथ ही स्पष्ट नही हो सकता । कामायनी में सग के सग ऐसे
है--विशेषकर उत्त राध मे--जहा इस प्रकार के शब्द भरे पड है श्रोर उनका
वास्तविक रहस्य जाने बिना झथ की विवृत्ति अ्रसम्भव है । 'इडा' सग का वह
प्रसिद्ध पद जिसकी पहली पक्ति है--“सकुचित म्रसीम श्रमोघ शक्ति ' ( पु०
१६४) --रदेसका प्रमाण है। इस पद में राग, विद्या, काल, कला, नियति
के पारिभाषिक श्रर्थों का सम्यक् ज्ञान तो झनिवाय है ही, 'सकुचित' जसे
दाब्द का पारिभाषिक श्रथ जाने बिना भी काम नहीं चल सकता । 'श्रानन्द'
सग झपेक्षाकृत सरल प्रतीत होता है, कितु बात ऐसी नही है। उससे भी
पद-पद पर इस प्रकार के पारिभाषिक दब्दो की समस्या खडी हो जाती
है। एक साधारण सी पक्ति है--“मनु तमय बठे उ मन' '-यहा 'तन्मय'
आर *उमन' के सामा य दब्दाथ मे विरोध है, किन्तु 'उन्मन' का पारिभा-
बिक अथ स्पष्ट हो जाने पर यह विरोध अपने झाप मिट जाता है। मेरे
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