प्रशासनिक सिद्धान्त एवं प्रबन्ध | Prashasanik Siddhant Avam Prabandh
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
660
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रगपचारिक ैंगेस्न वी प्रदधारणा श्रभिपरणण एवं घनशासन 231
थी जा सकती । बात मे यह ध्यान रेखना चानिए कि पाश्चात्य देशा में श्रनौपचारिग
सैगठन वाफी सीमा हक झौपचारिव होता जा रहा है. लेविने भारत जसे
विकासशौन देश मे ऐसा नही है। रसहा मुख्य कारण पह है कि पापचाय देशा में
संगठनात्मव प्रवाह को गति बड़ों तीव्र रही है । भारत जसे देश! मे उसकी तीघ्रेता
मे घीमापन है निमंलता है । पापचात्य देशो मे उदाहरण के लिए चाय वे बजद
भ्रनेक सवठना मेक समस्यापा के समाधान बा काप करते रहते हैं लड्न
भारत में शायद हो एस काय इनक द्वारा किए ने हैं ।
सामाजिक मनोदनानिक था मानयवादी दृष्टिकोण प्रंपदा विचारधारा को
विस्तार से समभन क दिए हुप पृथक के होय शीपको के ध्रस्तगत मानवाप पत्तिवे
को विशेषत्ताश्षो संगठन से मावनाशा मानवोप ध्यवहार झौर सामाजिक वात!वरण
संगठन में सामाजिक सम्बंध मानव सम्द थो को प्रति झौर संगठन मानव
सम्बधा पर हाथोन प्रयोगों प्रोर कुछ मय प्रयोगा पर विचार करना होगा ।
अ्रनोपचारिक सपठन (10०0: एट्ग्याध्या!09) बी श्वपारणा पर
व श्रष्याय मे प्रोपचारिक संगठन के प्रसग मे कि्चारकर चुडे हैं। संकेत रूप
बन जाता है कि भ्रध्यस की शक्तियों बा प्रयाग उस वर्मवारों दास ही शिया जाता
है। प्राय देखा जाता है कि यदि डिसी ध्यक्ति की संवाए झधिक मपवान हैंतो
उसे स्थान देन क राय के औपचारिक स्प मे रदनुकून परिवतन भी क्या जाता
है। बोई भी श्रीपदारिक याजता चाहे वह श्तिनी भी योग्यता एव कुशलता के
साथ बनायी जाए उस समय तक मइसव नटीं रखती जब तक कि परिवर्तित
चातावरणा एव परित्ितिय! के सनुस र वह धपन झ्ापकों समायापित ने कर ले ।
दुसरे शज्ो मे प्रोपचारिक सपरन को उपयोगी एस प्रभावशाली बनते के लिए
बाड़ बहुत श्रनीपचारिक बनना पढ़ता है। भनीपचारिक व्यवहार प्राय श्रीपचारिव
संग्रठन के रिक्त स्थाना की ऐरेमि करता है ।
सानेव सम्द था पर कुछ प्रयोग एल्टन मो के निष्कष
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* मानव यवहार पर उसके चरित्र सादतों भावनाग! सू ये. समाज
व्यवस्था झादश परम्परा एग एस ही श्र तत््वा का नो श्रभाव पहता है वह
साठन मे मी उसकी वियाशी को ए नवीत माड देने का कारण बन जाता है 10
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