श्री भागवत दर्शन [ खण्ड - २५ ] | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 25 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सू्यबंश में प्रथम पृष्र की कथा
(प्रह४
पृपघस्तु मनोः पुत्री गोपालों गुरुणाकृतः 1
पालयामास गायचों राज्यों बीरासनय्तः 11%
(शी भा० ६ स्क० २ श्र० ३ श्लो०)
खप्पय
इक्वाक सूग श्रादि भये सुत मनु के पुनि दल ।
प्रथम पूषघ् चरिय कहूँ फिर शोरति की यश ॥
कीये गुरु गोपाल कुमर रक्षक गाइति कु ।
हिसक झा सिंह व्याप्न मारे नित सिनि कू ॥
एक दिवा निदि धनु कू”, पकरि सिंह भाग्यों तहां ।
डकराई गया जवह्टि, से असि सो पहुँच्यी वहाँ ॥1
गोएं छोक की माता हैं, जो गीझों को रक्षा नहीं करता
सनके वध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहायता देता है, वहू
दस्यु है, वर्शाधिम से बहिप्कृत है गोवघ का इतना बड़ा
कक श्रीशुकदेवजी कहते है--“राजद ! वैवस्वत मनु के पु पृथप्
को गुर सिष्ट ते अपनी गौभों का रक्षक बनाया ३ वह राजवुभार
राचि थे सावधानी के साथ बीरासन में चैठकर गोमों की रक्षा करता
रहता था 1”
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