मदनुयोगद्वार सूत्रम (पुर्वादम) | Madnuyog Dawar Sutram ( Purwardam )

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Madnuyog Dawar Sutram ( Purwardam ) by उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम - Upadhyay Jainmuni Aatmaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ भनुयोगढ़ार सूवर दे ( ६ ७. का हज ही ७८ सता -स्थापना झाइरंयक उसका नाग दे जो चिनादि कर्म हे उनमें आवश्यक की पूर्णीकृति की जाय यदि वे उसी मवार स्थापना की छुई हैं, सत्र दे सदुरूप स्थापना फददी जानी है, यदि बरादादि को स्पापना माना हुआ है, तप वो असद रुप स्थापना मानी जाती दें और नामस्थापना का परस्पर भद इतनी ही है कि नाम थापु पर्मन्त रह सक्ता दे स्थापना श्ल्प वाल की भी दो सक्ती दे, यादत्‌ स्थिति पर्न्त भी रह सट्ठी है, सो इतना दी भेद दोने पर इन को नाप और स्थापनावश्यक फाइते हैं, किन्तु यहा पर स्थापना निचेष ही दिखाया गया है नहु पूननीप, ब्योंफि यदि बह पूजनीय दी होता तो सूतरकार थहां उसका अवश्य दी विधान फर देते । अप द्व्यावश्वक फा भणन किया नाता है । मूल-रसेकिंत दव्वावस्तय” २ दुविह एणणुत्त तजहा ा- गमदों य नोद्यागमथ्यो य। सेकिंत झागमद्यों दव्वावस्सय” २ जस्सण थावस्स॒गुत्ति पय मिव्खिय ठिय जिय मिय परिजिय नामसम घोससम अ्रद्दीणस्खर अएच्चखर अव्याइदफ्सर थकखलिय थमिलिय झवच्मेलिय पड़िपुन्न पडिपुलघोसं केंठो्टवि्पमुरू ुरुपयणोवगय सेण॒ तत्य वायणाएं पुच्छ- ' शाए पारयदणाएं घम्मकद्ाए णो ्रणुप्पद्दाए कम्हा ? अर- /नोगों दव्बमितिक्ु ॥ ८ ॥ द हिन्दी पदार्ष-( सेकिंत दव्यायस्सय ) बह फौनसा द्रव्यावश्यक है है शुरु प्र रुएते हैं ( दब्वावस्सय ) द्रव्यायरयक ( दुविद पस्नतें ) रद्द मकार से मतिपादन न फिया गया है | (तनहा) जैसे कि एमागमश्योय) श्रागम से धर (नो श्रागमओय) लिनों आगम से, शिष्य ने फिर परम किया कि हे भगवन्‌! (सेक्त झागमथों द- हि सावस्पय ) गम से द्रव्यादरपक कौनसा है है शुरु ने उत्तर दिया कि ६ जाष्य | ( आमपथों देव्वावस्सय ) आगम से ट्रब्यावश्यक उसका नाम हैं दि, -एजस्सण ) निसन ( आदरसपलि ) 'भारण्यद ऐसे ( पर 9 पड ( सिनिखय » 'ख शिया है ( ठिय ] हृदय में स्थित कर लिया है (मिंग ) अनुकमता पूर्व उन फिंया ( पिय ) अवराटि की मर्यादा भी भली भान्ति में जानता दै एप




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