संस्खापा सरीरकम | Sanskhapa Sareerakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
122 MB
कुल पष्ठ :
850
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सक्षेपशारीरक प्रथमो5ध्यायः । १३ ३
सिद्धान्तदीपोक्तिमवेश्य मूलशाखे श्वुतीमूलनिवन्ध्न च ॥१९॥।
इह हि सर्वज्ञात्मगिरा प्रसिद्धनामा महामुनिरखिछश्रुतिमौछि-
तत्त्वाथंविचारशाखस्य श्रीमरच्ठारीरकाभिधस्य श्रीवेदव्यास-
पददासुनिकृतसूत्रसन्दभोत्मकस्य भगवत्पादाभिधान श्रीमच्छडूरा-
चायेकृतमाष्यमकटीकूतार्थस्याप्यतिगम्मीरस्य स्लेपतस्तात्पर्या-
5थेजिज्ञासूनुपलभ्य तदनुग्रहाय श्रीमच्छारीरकशाखम्करण-
वाचिकमार भमाणस्तत्राविधपरिसमापिपचयगमनशिष्टाचारपरि-
पाठनफलें विशिष्ठशिष्टाचाराजुपितस्मृतिश्वुतिप्रमाणकं स्वेष्ठदेवता-
उ्लुसन्धानात्मकं मड्लमाचरल्थोच्छाख्रीयाभिषेयभयोजने दशे-
यति श्रोठ्प्रहत्तिसिद्धये--
अनृतजडबविरोधिरूपमन्त-
चयमठबन्घनदुः:खताविरुडूम्
आतिनिकटमविक्रियं मुरारे:
परमपदं प्रणयादमिष्टबीमि ॥ १ ॥
अन्त जडेत्यादिना प्यत्रयेण।।अय॑ ग्रन्थ! शाखं च भवति,
प्रकरण च, वा्सिकं च । यतो वश्ष्यति,श्रीमच्छारीर काथेप्रकटन-
पढुताशालि झाखे विदध्म इति । विमशन्त्विदं प्रकरण प्रनसेति
च । वा्िकत्वमप्यस्याथतो5वसीयते । तत् कचिदू व्याख्याना-
ध्बसरे प्रदर्शयिष्याम:। अस्मिन हि शाखे तस्वम्पदाथेतत्त्वं तदेक्य-
वाक्यायेतच्॑च प्रतिपाद्यो विषयस्तज्ञानाच तदूगताविद्या-
तत्कायोत्मकसंसारबन्घबाधः स्वस्वरूपपरमानन्दावि भीव! प्रयो-
जनपिति स्थिति: । तदुमयमिह मडलाचरणव्याजेन पथत्रयेणाद
संग्रह्माति । तत्राप्यनृतेत्याथेन लक्ष्यपदार्थमुक्रामति । एपाध्क्षर-
योजना । म्ुरारेः परमपदमभिष्टबीमीत्यन्वयः । प्ुरनाज्ञोइसर-
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