विनोद - वैचित्र्य | Vinod - Vaichitry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुलसीदास की उत्प्रेश्षाएं एवं रूपक । ष्थ
दिप्ाएं संग्रह करके उन्हें हिन्दी-कविता में गंफित किया है।
दादानिक सिद्धान्तों तक को मनोहर उपमाश्ं के भीतर रख
कर इसने उन्हें सरल बना दिया है। हम तुलसीदास की
उत्पेश्वा, उपमा, रूपक इत्यादि के कुछ नमूने देते हैं । इनके हमने
साधारण रीति से छाँट लिया है । दूँ ढ़ने से श्रार भी विलक्ण
विचित्रताभों का पता लगेगा ।
देखिए रामायणकार रूपक के निरूपण में केसे सखिद्धहस्त
हैं । अआपके लिये रामायगा-काव्यरूपी मानसरावचर तेयार किया
गया है, जिसमें रनान करके आप अपने अन्तमंल का दूर कर
सकते हैं । चाल, अयाध्या आदि काण्ड उस तड़ाग की सात
सुन्दर सीढ़ियाँ हैं; उसमें सीताराममय सुस्वादू जल भरा डुआ्ा
है । उपमारूपी तर डं उत्प्राचित हाकर मन्द मन्द शब्द कर रही
हैं। दाहा, चापाई, छन्द श्रार सेारठा भांति भाँति के कमल हैं,
न्हें सुक़तरूपी भ्रमर चारों ऑ्रार से घेरे हुए हैं । ज्ञान भ्रौर
विराग ये दे हंस उस सरावर के दोनेां तटोां पर बेठे हैं । जप,
तप आदि नाना भाँति के जलचर उसमें आनन्द कर रहे हैं ।
घपा ग्रौर दया के उत्तम उत्तम चूक्ष उसके हृदय के मने-
रम बना रहे हें । रामचरित-प्रेमी उस विचित्र तड़ाग के रश्नक
हैं ग्रीर थे ही उसके अधिकारी हैं। विषयावतेरूपी किदिबिष
वहाँ नाम के भी नहीं है, इसलिये बक श्रार काक के तुल्य
स्वार्थी मनुष्यां का उसमें आनन्द नहां आता है, तथा वे उससे
दूर ही रहते हैं । तुलसीदास कहते हें:--
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