पृथ्वीराज चौहान | Prithviraj Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इतिहास चेत्ता पुराने समय की दिल्‍ली श्राज कल्द की दिल्‍ली से दो मील दक्षिण की ओर बसी हुई बताते हैं । इसके पश्चात्‌ जिस प्रकार अन्य २ शासक यहां होते गये उसी प्रकार इसमें परिवर्तन भी होता गया। झस्तु जो दो सन 3३३ में तोमर चंश के राजा झनंगपाल की दिल्‍ली में तूती बोलने लग गयी .। इन्होंने भो अपनी -राज- घाोनी झलग ही बसायी । इनके संचंध- की एक विचिश्न घटना का उल्लेख पृथ्वीराज रासो में पाया. ज्ञाता है। वद्द यह कि दिल्‍ली नगरी निर्माण कराते समय झनंगपाल के कुल पुरोहित ते एक कील घरती पर गाड़ कर कहा कि जब तक यह कील उखाड़ी न ज्ञाययी तब तक तुम्दारे वंश घर्से का राज्य दिल्‍ली में सदा झटल रदेगा । कारण कि इस कील की नाक पाताल में शेष नाग के मस्तक पर जा लगी है। किन्तु पुरोहित जी के इस बचन पर झनंगपाल विश्वास न कर सके । अतः उन्दोंने कील उखाड़ने की आज्ञा दे दी । कील उखाड़ी गई सबों ने देखा--उसमें रक्त लगा हुआ था । शव उन्हें झापनी सूखंता पर बड़ा दुःख श्र पश्चात्ताप हुआ । झतः उन्दोने उसी समय पुरो हित को घुलवाया और बड़ी नल्रतापूर्वक प्राथंना की कि महाराज क्षमा करें मुकसे चड़ी भूल हो गद कि जो झापकी बातों पर विश्वास न किया । झव पुनः छपाकर इस कील को गाड़ दे । परन्तु इयेहित इस पर राजी नहीं हुए बोले शोक मैंने चाहा था कि तुम्हारा राज्य सदा अचल रदे फिन्दु इ श्वर




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