हिन्दी गद्य पारिजात | Hindi Gadya Parijat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ प्रेम नारायण शुक्ल का जन्म कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील के अंतर्गत ओरिया ग्राम में २ अगस्त, सन १९१४ को हुआ था। पांच वर्ष की आयु में माता का निधन हो गया था, पिता जी श्री नन्द किशोर शुक्ल, वैद्य थे। आपकी सम्पूर्ण शिक्षा -दीक्षा कानपुर में ही हुई। सन १९४१ में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ थाl इसी वर्ष अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'साहित्यरत्न' परीक्षा में भी आपको प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा चलाये गए अखबार 'प्रताप' से शुक्लजी ने अपने जीवन की शुरुआत एक लेखक के रूप में की l
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूसिका
री
है। गद्य की शैली एसी है जैसी की अधिकतर राज्यों की होती हू: इसी,क्रे _
साथ-साथ परवर्ती लेखकों का ऐसा पुनरुक्ति दोष थी इनमे हम नहीं पाते ,
हूं । यही इनकी मुख्य विद्षेषताएँं है । अब एक उदाहरण देखिये --- ,
तब श्री महाराजकुमार प्रथम श्री बसिष्ठ महाराज के चरण छूट
श्रनाम करत भए । फिर अपर वृद्ध समाज तिनको प्रनाम करत भए ।
फिरि श्री राजाधिराज जू को जोहार करिक॑ श्री महेन्द्रनाथ दशरथ जू के
निकट वैठत भणए ।
'किशोर्दास ( १७ वी शताब्दी )
सन् १९१७ के लगभग डा० वेनिस ने १७ वी झताब्दी की एक टीका
शकी खोज की । यह टीका सस्कृत के प्रसिद्ध ग्रत्थ “श्वगार शतक की है ।
-टीकाकार का नास किशोरदास दिया गया है । दैसे तो इस टीका की
भाषा भी बडी ही विचित्र है, और इसका कोई विशेष साहित्यिक मूल्य नहीं
हू, परन्तु गद्य साहित्य की परम्परा एव विकास के अध्ययन की दुष्टि से
इसका भी अपना एक विशेष स्थान है, वैसे यह केवल पुस्तकालय या हस्त-
लिखित पुस्तकों के अजायवघर मे रखने की वस्तु है ।
भाषा इसकी बहुत चुटिपूर्ण हैं । कुछ ऐसे दाब्दो का भी प्रयोग किया
गया हैं जिनके अर्थों का ही पता नही लगता है । फारसी के शब्दों का भी
प्रयोग किया गया हूँ । कुछ शब्दों का प्रयोग विचित्र ढग से हुआ है , 'ओभकल'
के अर्थ मे 'बोभकल' तथा *अरुचिकर' के अ्थे में 'गयार' दाव्द का प्रयोग सिलता
है। भाषा में सजीवता का अभाव है तथा नीरस-सी प्रतीत होती है । इस
टीका की भापा का उदाहरण देखिये--
अथ-+अगना ज हे स्त्री सु । प्रेम के प्रत्ति आवेदा करि । ज कार्य
करन चाहित हे ता कार्य विपे । ब्रह्माऊ प्रत्यूह आघातु । अन्त राउ कीवे
कह । कातरण काइर है । काइरू कहावे असमर्थ । जु कछू स्त्री करयी
User Reviews
Ranjana Dixit
at 2020-09-09 15:35:09