कवित्त - रत्नाकर | Kavitt - Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
नगन सघन घरे गाइन कों सुख करे
ऐसो तें भचवा छुत्र घर थी है उचाइ के ।
नीके निज्.अज शिरिवर जिमि महाराज
राख्यो दै मुखलमाभ धार तें बचाह के ॥|
कुछ दस्तलिखित प्रतियों में 'बूर कली बीर' के स्थान पर “यूर बल
बीर” पास पाया जाता है । इस पाठ के अनुसार इस राजा का नाम बलबोर
श्रथवा बीरबल रद्द दोगा ।
कुछ विद्वानों का श्रनुमान दे कि सेनापति का संबंध मुसलमानी
दरबार से था* | 'रामरसायन” के एक छुंद से इख्र कथन की पुष्टि भी द्ोती
है । सेनापति कहते हैं--
केतो करो कोई, पेये करम लिख्योई, तातें
दूसरी न होई, ठर सोई ठहराइये ।
झाघी तें सरस गई बीति के बरस; अब
दुउजन द्रस बीच न. रस बढ़ाइये ॥
चिता अनुचित तजि, घीरज उचित, सेना-
पति हू सुचित राजा राम गुन गाइये ।
चारि बरदानि तजि पाइ कमलेरछुन के,
पाइक मल्लेच्छन के काहे कों कहाइये* ॥
इससे स्पष्ट दे कि कवि को मुसलमानों की दासता से विरक्ति हो गई
थी । घन-लिप्सा तथा श्रन्यान्थ प्रलोभनों से वे बचना चादते थे । फिंतु किस
मुसलमान शासक के यहाँ ये नोकर थे, इसका कुछ पता नदीं चलता । जहाँ-
गीर के शासन काल में बुलंदशहर के श्रघिकांस बड़गुज्जर राजाश्रों ने मुसल-
मानी घर्मे स्वीझार कर लिया थार । छुतारी, दागापुर, घरमपुर श्रादि के
वतमान शावक इन्दीं बड़गुज्जर राजाओं के वंशज हैं। संभव दे इनमें से
क्सी रियासत से सेनापति का संबंध रद्दा दो ।
फलववपाररस्पवरररस्ततरसस
नाल पका कककाककलकवागक ना लय
/ ०. ०. धंकाया७-.-दत लायक लो” पलक परि-पूरिरतितिकधिकलडयाचएकाननककनगेपयकिनन-य हि
१ पदली तरंग, छ दे ५६
२ मिश्रवन्घु-वेनाद, सांग र, प० ४२
३ पाँचवी' तरंग, छंद ३३
४ बुलंदशइर गनेयिटर, पृ० ७६
रै.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...