कवित्त - रत्नाकर | Kavitt - Ratnakar

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Kavitt - Ratnakar by उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका नगन सघन घरे गाइन कों सुख करे ऐसो तें भचवा छुत्र घर थी है उचाइ के । नीके निज्.अज शिरिवर जिमि महाराज राख्यो दै मुखलमाभ धार तें बचाह के ॥| कुछ दस्तलिखित प्रतियों में 'बूर कली बीर' के स्थान पर “यूर बल बीर” पास पाया जाता है । इस पाठ के अनुसार इस राजा का नाम बलबोर श्रथवा बीरबल रद्द दोगा । कुछ विद्वानों का श्रनुमान दे कि सेनापति का संबंध मुसलमानी दरबार से था* | 'रामरसायन” के एक छुंद से इख्र कथन की पुष्टि भी द्ोती है । सेनापति कहते हैं-- केतो करो कोई, पेये करम लिख्योई, तातें दूसरी न होई, ठर सोई ठहराइये । झाघी तें सरस गई बीति के बरस; अब दुउजन द्रस बीच न. रस बढ़ाइये ॥ चिता अनुचित तजि, घीरज उचित, सेना- पति हू सुचित राजा राम गुन गाइये । चारि बरदानि तजि पाइ कमलेरछुन के, पाइक मल्लेच्छन के काहे कों कहाइये* ॥ इससे स्पष्ट दे कि कवि को मुसलमानों की दासता से विरक्ति हो गई थी । घन-लिप्सा तथा श्रन्यान्थ प्रलोभनों से वे बचना चादते थे । फिंतु किस मुसलमान शासक के यहाँ ये नोकर थे, इसका कुछ पता नदीं चलता । जहाँ- गीर के शासन काल में बुलंदशहर के श्रघिकांस बड़गुज्जर राजाश्रों ने मुसल- मानी घर्मे स्वीझार कर लिया थार । छुतारी, दागापुर, घरमपुर श्रादि के वतमान शावक इन्दीं बड़गुज्जर राजाओं के वंशज हैं। संभव दे इनमें से क्सी रियासत से सेनापति का संबंध रद्दा दो । फलववपाररस्पवरररस्ततरसस नाल पका कककाककलकवागक ना लय / ०. ०. धंकाया७-.-दत लायक लो” पलक परि-पूरिरतितिकधिकलडयाचएकाननककनगेपयकिनन-य हि १ पदली तरंग, छ दे ५६ २ मिश्रवन्घु-वेनाद, सांग र, प० ४२ ३ पाँचवी' तरंग, छंद ३३ ४ बुलंदशइर गनेयिटर, पृ० ७६ रै.




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