श्यामू की माँ | Shyamu Ki Ma

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shyamu Ki Ma by पांडुरंग सदाशिव साने - Pandurang Sadashiv Sane

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पांडुरंग सदाशिव साने - Pandurang Sadashiv Sane

Add Infomation AboutPandurang Sadashiv Sane

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आरंभ दे सन ही नहीं बरनू दारीर पर भी इतना प्रभाव पड़ता है, कि उसके मछ (दस्त ) का रंग तक हरा हों जाता है; यह जानकार ख़ियों का कहना हैं। सारांश, बात्यावस्था में मन अत्यधिक संस्कार-ग्राही होता है। वह मिट्टी के छोंदे या मोम के गोले की तरह मृदु एवं कोमल होने से उसे जो भी आकार देना चाहें; दिया जा सकता है। जैसे माता यदि तैल की कोई वस्तु ख। ले; तो बच्चे को खांसी होने का भय रहता है और वह यदि गन्ने या आम का रस पी ले, तो बच्चे को सर्दी लग जाती हैं। उसी प्रकार यदि माता बालक के सामने वस्तुओं की तोड़-फोड करे या किसी से गाली-गढौज अथवा मारपीट या झगड़ा-झझट करे, तो इससे भी बच्चे के मन कों खांसी हो सकती है--उसके चित्त पर बुरा प्रभाव पड सकता है। किन्तु इस बात को माताएँ भूल जाती हैं। माता की बोलचाल, उसका हँसना या करुद्ध होना भादि बच्चे के आसपास होनेवाली उस ( माता ) की समस्त 'क्रियाएँ बच्चे के मन, बुद्धि और हृदय के छिए दूध के समान होती हैं । दूध पिलाते समय यदि माता के नेत्र क्रोध या ईर्ष्या के कारण छाल हो रहे हों तो अवदय बच्चे का मन भी क्राधी होगा । इस प्रकार बच्चे की रिक्षा माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों तथा आसपास की सजीव-निजीव सृष्टि पर अवलबित होती हैं । इसलिए बालक के सामने बहुत सावधानी से बरतना चाहिए। उसके आसपास का वातावरण एकदम स्वच्छ ( निर्मल ) रखना चाहिये। सूर्य-चंद्रमा को पता हो या न हो, किन्ठ उनकी किरणों से कमल अवदय खिलते हैं। ठीक इन सूर्य-चंद्र की किरणों के समान ही मनुष्य का व्यवहार भी है। माता-पिता के सम्पूर्ण कार्यकलाप यदि निर्म७, सतिज और तमोहीन होंगे, सो बच्चों के मन भी कमछ की तरह रसपूर्ण, सुगन्घित, रमणीय आौर पवित्र बन सकेंगे । अन्यथा वे झमियुक्त, रोगी, निस्तेज, और संघहीन, रस-रहित एवं अर्पावत्र हुए बिना नहीं रह सकते | बच्चे का जीवन बिगाइने जैसा दूसरा पाप नहीं हो सकता | जैसे कि निर्मछ झरने के पानी को गैंदछा कर देना घोर पाप माना जाता है। बच्चों के आसपास रहनेवालों की यह बात याद रखनी चाहिए। वेद मे वसिष ऋषि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now