महापुरुषों की जीवनगाथायेँ | Mahapurushon Ki Jivanagathayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रसमायण
दी, * वत्स, डरो मत, आज तुम्हारे हृदय की विगलित करुणा,
कविता बन प्रकट हो रही हे--और तुम ढछोक-कल्याण के लिये
ऐसी ही काव्यमय भाषा में राम के चरित्र का वर्णन करो । ” इस
प्रकार प्रथम-कंविता की सृष्टि हुइ । इस प्रकार विश्व के इस अप्रतिम
महाकाव्य-- भारतीयों के आदि काव्य--रामायण की रचना प्रारम्भ
हुई । प्रथम कवि वाल्मीकि के हृदय की करुणा ही विश्व के आदि
काव्य का आदि-छोक बन गई और उसके बाद महर्षि ने परम
मनोहर रामायण महाकाव्य की रचना की । भारतवर्ष में अयोध्या
नाम की एक सुन्दर नगरी थी जो आज भी विद्यमान है । भारत
के मान-चित्र में आपने देखा होगा जिस प्रान्त में इस नगरी का
स्थान-निर्देश किया गया है उसे आज भी अवध ही कहते हैं ।
यही प्राचीन अयोध्या थी । वहाँ पुरातन काल में राजा दरारथ
राज्य करते थे । उनका अन्त:पुर तीन रानियों से सुशोभित था,
किन्तु अब तक राजा को पुत्र के मुखावलोकन का सौभाग्य प्राप्त
नहीं हुआ । इसलिये घमेपरायण हिन्दुओं की भौंति, राजा अपनी
तीनों रानियों सहित, पुत्र-कामना से ब्रतोपवास धारण कर, देवा-
राघना करते हुये दिन यापन करने छगे । कालान्तर में राजा को
चार पुत्र-रत्र प्राप्त हुये । उनमें सबसे ज्येष्ठ राम थे । चारों राजकुमार
अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि थे । उन्होंने बीघ्र ही सभी विद्याओं में प्रबीणता
सम्पादित करनी ।
उसी युग में एक और राजा थे जिनका नाम जनक है ।
उनके सीता नामक एक अनिन््दय्य सुन्दरी कन्या थी । सीता एक
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