महापुरुषों की जीवनगाथायेँ | Mahapurushon Ki Jivanagathayen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahapurushon Ki Jivanagathayen by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रसमायण दी, * वत्स, डरो मत, आज तुम्हारे हृदय की विगलित करुणा, कविता बन प्रकट हो रही हे--और तुम ढछोक-कल्याण के लिये ऐसी ही काव्यमय भाषा में राम के चरित्र का वर्णन करो । ” इस प्रकार प्रथम-कंविता की सृष्टि हुइ । इस प्रकार विश्व के इस अप्रतिम महाकाव्य-- भारतीयों के आदि काव्य--रामायण की रचना प्रारम्भ हुई । प्रथम कवि वाल्मीकि के हृदय की करुणा ही विश्व के आदि काव्य का आदि-छोक बन गई और उसके बाद महर्षि ने परम मनोहर रामायण महाकाव्य की रचना की । भारतवर्ष में अयोध्या नाम की एक सुन्दर नगरी थी जो आज भी विद्यमान है । भारत के मान-चित्र में आपने देखा होगा जिस प्रान्त में इस नगरी का स्थान-निर्देश किया गया है उसे आज भी अवध ही कहते हैं । यही प्राचीन अयोध्या थी । वहाँ पुरातन काल में राजा दरारथ राज्य करते थे । उनका अन्त:पुर तीन रानियों से सुशोभित था, किन्तु अब तक राजा को पुत्र के मुखावलोकन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । इसलिये घमेपरायण हिन्दुओं की भौंति, राजा अपनी तीनों रानियों सहित, पुत्र-कामना से ब्रतोपवास धारण कर, देवा- राघना करते हुये दिन यापन करने छगे । कालान्तर में राजा को चार पुत्र-रत्र प्राप्त हुये । उनमें सबसे ज्येष्ठ राम थे । चारों राजकुमार अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि थे । उन्होंने बीघ्र ही सभी विद्याओं में प्रबीणता सम्पादित करनी । उसी युग में एक और राजा थे जिनका नाम जनक है । उनके सीता नामक एक अनिन्‍्दय्य सुन्दरी कन्या थी । सीता एक ७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now