श्री भगवत गीता | Sri Bhagavad Gita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इद ते नात इदे शरीर इद ज्ञानमु इन्द्ियार्थेषु इश्थरस्सव उत्कामन्ते उत्तम: पुरुष उदासीनव उपद्ष्टानु ऊध्चे गच्छ ऊध्वमूठमघ ऋषिभिषंहुधा एतान्यपि तु एतां दृष्टिमव एतेविंमुक्त: ओं त्सदिति कंचिदेतच्छ्त कटूबम्ठव कर्मणस्पुकत कशयन्त; काममाश्रित्य काम्यानों कार्यकारण कयमिस्येव कषिगौरक्ष्य केर्लिज्ेख्िगु केत्रशेलज्यो क्षेत्रशे चापि गामाविदियय गुणानेतान्‌ 67 61 10 १7 २28 29 38 १8 72 16 0 २20 कक जि 18 20 श्ीमड्रगवद्रीता-अकारादि चिन्तामपरि चेतसा सवकर्मा उ्योतिषामपि ज्ञान कमेच ज्ञान शेप जेये यत्तख तत; पढे तथच सेस्पृत्य तत्र सत्त्वं तलब सहि तत्मेत्रे यचच तदित्यनभि तमस्त्वज्ञान तमेब शरण तस्माच्छा तस्मादोमि तानहैं ट्रिष तेज; क्षमा त्याज्य दोष लिविघा भव लिविधं नरक दम्भो दुर्पो दातब्यमिति दुख;मिश्येव देवद्विजगुरु देवी संपट्टि द्वाविमों पुरुषी दो भूतसगी घृत्या या. ध्यानेनः 16 18 13 18 18 13 15 18 हु 18 13 17 हु 18 16 17 16 16 18 11 16 16 17 18 [7 16 15 16 5 (3 ही हा नच तस्मान्म न तदस्ति न तद्भासयते न द्रे्ठइचकु न रूपमस्थेह नष्टों मोह: नहि देदभू नार्न्य॑ गुणे नियतस्थतु नियत सड्र निर्मानमोहा निश्चय श्ूणु पश्चेतानि परे सच ' पुरुष; अकक एथक्त्वेन प्रक दापव प्रकृर्ति पुरुष प्रकृत्येव प्रदर्ति च प्रदूर्ति च बहिरन्तथ्य बुद्रेंद ध्रृते बुद्झण दिशु त्रह्मणो हि न्रह्मभूत; त्राह्मणक्षलिय भक्तया माम मचित्तस्सवदू मन: पाने, 18 18 18 15 18 14 18 15 18 व 13 18 13 13 16 18 13 18 18 14 18 [है 18




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