भक्तिकाल का दार्शनिक दृष्टिकोण | Bhakti Kal Ka Darsanic Dristikon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारबसुची के छर वें सुत्र मैं घाक्ति बताते हुए कहां गया है कि मगवान की माक्ति के हि ऊचन्तीच सती पुकार: , उप ,विया पद बन आर ड़्िधा का कौई मैद नहीं है | पदूमपुराण्य के ल० ४२ श्ठीक १७ मैं मीं यह कहा गया है कि सभी देश, युग जाति बार अवस्था मैं मतुष्यीं हो सगवान की मॉफ्ति का पधिकार है कीं कि सगबान सब के हैं | काँब सम्राट गोस्वामी रपश्हिदास जी कहते है - 'स्वफच सब एतस जपन जड़ पावर कौठ किशात। राम कहत पावन परम हौत सुवम रस्णत ३3 हब मे थी कहा गया है -- बश्य ,साद जरा शडी , ौय,चंडालू प्ले छाप पुनीत मगबत मजन सै, आप तार तार झुल दौय ।1 घन्य सी गाव ,घन्य साँ ठाएव,लन्ण पुनीत कब सब लौय। पाहित सुए ८ ज्रपाति राजा मक्‍त बाबा अब ने कस | ररमारण और गीला में माक्ति के चार मेद बताये गये है «- बतुर्विषा' मजन्ते मां जला: सुकतिनाँ झुत । बाला चिशासारगाधो जानी च मातष्णस 11 तैष्यां शानी 'नित्यपुक्त रकम का लिशिष्रतै | पियीं हि हनिनी स्थर्द सह सब सभ फिय: 11 कू मन सौर | पेफिकोए काले यहहित-पंद्ति, दााकं साबितहि।हजिसस पोल गादपीि को लगा सदर पीविदश पयमा,िशिकष! किडिकि सेब हनन फू लीश्त: प्नयॉरत मानस - ऊस्तेध्या स्काएडु - दे सन्पेटे।




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