बोधसागर 7 | Bodhsagar-7

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Bodhsagar-7 by श्री युगलानंद- Shri Yugalanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्यपुरुकय नम ! अथ श्रीबोघसागेरे । जयोद्ज्स्तरंगः । ग्रन्थ ज्ञानवोध । णायगेटिियनाााा कबीर वचन । सासी-सत गुरू जीव प्रवोधके, नाम ठखावे सार । सार शब्द नो कोई गढ़, सोई उतार हे पार ॥ चोपाई । भवसागर है अगम अपार । तामें बूड गयो. संसाय॥ 'पार छान को सब कोई धावे। बिना नाम कोई पार न पाते # यह जंग जीव थाह नहीं पावे। विन सतगुरु सब गोता खाते ॥ जग जीवों से कहो युहराई । सत्गुरु केवट पार ढगाई ॥ यह जग बूड गयो मैंझधारा । सतगुरु भक्त भये भवपारा॥ सत्तताम जो. करे पुकारा। जब भव जठ उतरेंगे पारा ॥ सत्तपुरुष हे अगम अपार । ताकों सब मैं कहीं बिचारा ॥ आदि अनाम अहम दे. न्यारा। निराधार महँँ किया प्सारा ॥ ताहि पुरुष सुमरो रे भाई। तन छोडे जिवढोक सिधाई ॥ कहे कंबीर नाम गई सोई। भरम छोड भष पारहिं होई ॥ साखी । भादिरह्म हिय पराखिये, छोड़ो भरम अजान। कहें कबीर जग जीविसे, गदिदे पद निरवान ॥




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