बोधसागर 7 | Bodhsagar-7
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्यपुरुकय नम !
अथ श्रीबोघसागेरे ।
जयोद्ज्स्तरंगः ।
ग्रन्थ ज्ञानवोध ।
णायगेटिियनाााा
कबीर वचन ।
सासी-सत गुरू जीव प्रवोधके, नाम ठखावे सार ।
सार शब्द नो कोई गढ़, सोई उतार हे पार ॥
चोपाई ।
भवसागर है अगम अपार । तामें बूड गयो. संसाय॥
'पार छान को सब कोई धावे। बिना नाम कोई पार न पाते #
यह जंग जीव थाह नहीं पावे। विन सतगुरु सब गोता खाते ॥
जग जीवों से कहो युहराई । सत्गुरु केवट पार ढगाई ॥
यह जग बूड गयो मैंझधारा । सतगुरु भक्त भये भवपारा॥
सत्तताम जो. करे पुकारा। जब भव जठ उतरेंगे पारा ॥
सत्तपुरुष हे अगम अपार । ताकों सब मैं कहीं बिचारा ॥
आदि अनाम अहम दे. न्यारा। निराधार महँँ किया प्सारा ॥
ताहि पुरुष सुमरो रे भाई। तन छोडे जिवढोक सिधाई ॥
कहे कंबीर नाम गई सोई। भरम छोड भष पारहिं होई ॥
साखी ।
भादिरह्म हिय पराखिये, छोड़ो भरम अजान।
कहें कबीर जग जीविसे, गदिदे पद निरवान ॥
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