इंद्रजाल | Indrajal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.76 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इदज्ञाल श्र
“हाँ, हाँ, जाता क्यो नहीं”--ठाकुर ने भी देंस कर कहा ।
गोली नयी हवेली की श्रोर चला । चट निःशक भीतर चला गया 1
बेला बैठी हुई तन्मपर भाव से बाहर की भीट भरोखे से देख रही थी।
जब उसने गोली को समीप श्राते देखा, को वह काँप उठी । कोई दासी
वहाँन थी। सम खेल देखने में लगी थी । गोली ने पोर्ली फेक कर
बद्दा-- बिला ! जल्द चलो ।”
बेला के हृदय में तीत्र श्रनुभूति जाग उठी थी। एक क्षण में उस
दीन भिलारी की तरद--जो एफ मुट्ठी मीख के थदले श्रपना समस्त
संचित श्राशीर्वाद दे देना चादता है -चहद वरदान देने के लिए प्रस्तुत
हो गयी। मन्त्रमुग्ध की तरद वेला ने उस श्राटनी का घूँघट बनाया !
वह घीरे-घीरे उसके पीछे भीड में रा गयी । तालियाँ पि्टी । हँसी का
ठद्दाका लगा । वद्दी घूघट, न खुलने वाला बूँबट सायकॉलीन समीर से
दिल कर रद्द जाता था । ठाऊुर साहब हैंत रदे थे । गोली दोनों हाथों से
सलाम कर रहा था ।
दो चली थी। मोर के बीच में गाली बेला वो लिये लत
फाटक के बाहर पहुँचा, तव एक लड़के ने श्रामर कहा -एक्या ठोक है |
तीनों सीधे उस पर जाकर बैठ गये | एक्का वेग से चल पड़ा ।
झभी ठाऊर साइ्र का दरदार जम रहा था तौर न के खेलों की
प्रशसा हो रही थी 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...