अन्तराल की लहरें | Antral Ki Laharainn

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Antral Ki Laharainn by प्राइजक ऐसिमोव - Praijik Aisimov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द धन्तराल की लहर भ्रथात्‌ उससे पहले जब कि उसे यह तक ज्ञात नहीं था कि लाल या सुनहरा रग क्या होता है, या यह कहिये कि जब उसे यह भी नही ज्ञात था कि रग क्या होता था, श्रौर वह केवल गले की घरघराहट से ही भ्रपनी प्रसन्नता व्यक्त कर सकता था, ये खेत उसका सारा दर्द हर लिया करते थे । उन दिनों में बलोना डुम्नकोय स्कूटर माग लाया करती, श्रौर हर छूटी के दिन उसको गाँव से बाहर धघुमाने ले जाया करती । वह मजे में सडक से एक फूट ऊचे विपरीत गुरुत्व-क्षेत्र पर तब तक खिसकते जाते, जब तक कि वह श्रात्रादी से मीलों दूर न पहुँच जाते भर उस समय काईट के फूलों से सुगन्धित वायु ही उनके मु ह पर थपेड़े देने को रह जाती 1 फिर वह सडक के किनारे बेठ जाते । उस समय उनके चारो श्रोर रंग श्रौर युगध का ही राज्य होता। वही बंठ कर वे खाना खाते, श्रौर दिन ढलने पर ही वापस श्राते । रिक का गला भर श्राया । उसने कहा, “चलो लोना ' फिर केतों मे चले ।” “प्ब तो देर हो गई ।”” '“अ्रच्छा तो फिर कस्वे से बाहर ही सही ।” लोना ने झपनी पेटी में रखे बटुए को छुप्रा । रिक ने उसका हाथ पकड़ लिया श्ौर कहा “चलो, पैदल ही चलें ।”' श्राघे घटे मे ही वह पक्की सडक छोड, धुल-रहित रेतीली कच्ची सड़क पर पहुँच गये । दोनो के बीच बड़ी जबरदस्त चुप्पी थी । बलोनता का ह्रदय एक परिचित भय की श्रतुभूुति कर रहा था । रिक के लिये जो भावनायें उसके हृदय मे थी, उनको व्यक्त करने के लिये, उसके पास नतो कोई शब्द ही थे श्रौर न ही उसने कभी इसका प्रयत्न ही किया था। यदि वह उसको छोड कर चला जाय तो क्या होगा ! यह छोटा-सा मनुष्य था, ऊंचाई में उसके बराबर, श्र भार में तो उससे भी कम ।




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