करकंड चारीउ | Karakand Cariu

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Karakand Cariu by श्री हीरालाल जैन - Shri Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) धर रुप्नि डालन स इस ग्रंथ के बनने का समय सन ?०६'- इस्वी के लगभग अनमान क्रिया जा सकता है । अर्भा उक्त छिलाठखा की और भी परी पूरी जांच होगे की, तथा उनमें निर्दिप्च बानी का पूरा एरा सामअस्य वेडान की आवध्यकता हैं । किन्तु अन्य प्रमार्णा के अभाव में दम ग्रंथकता का इन्हीं राजाओं के समकान्टीन मान ने ता हानि नहीं | इस साम- जस्य के धनुसार काव्य की रचना के स्थान ' आसाइय ' नगरी की स्व,ज्ञ वुन्देलस्वण्ड घान्त के भीतर की जान की आवच्यकनता ट । ग्रन्थ का विषय इस ग्रंथ मे कर कण्ड ( अप खरंदा-करकण्ड ) महाराज का चर्त्रि ददा संधिया मे वर्णन किया गया हैं । संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है । अगंददया की चम्पापुरी में धाडीवाहन राजा राप्य करते थ। एकबार वे कमसमपुर को गंय और वहां पद्मावती नाम की एक युवती कं! देखकर उसपर मोहित हराय । यबती का संरस्वक एक माली था जिससे वातयीत करने आदि से पता लगा कि वह युवती यथा में कौदाम्यी के राजा वस्ुपाल की पुत्री थी। जन्म-समय के अपधाकन के कारण पिला ने उस जमना नदी मे बहा दिया था । राजपुत्रा जानकर 'घाडीचाहन ने उसका पाणिघ्रहण कर लिया. आर उसे लम्पापुरी ले आय । कुल काल पश्चात्‌ चह गर्भवती हुइ ओर उस यह दाहला उत्पन्न हुआ कि मन मन्द चरसात में. में नररूप घारणकरकं, अपने पति के साथ, पक हाथी पर संचार होकर, नगर का पि आ्रमण करूं । एसा ४ प्रबन्ध क्रिया गया । किन्तु दुष्ट हाथी सजागनी को लेकर जंगल की आर भाग निकला । रानी ने समझा बुझा कर राजा की पक वृक्ष की डाली पकड़ कर अपने प्राण बयान पर राजी कर लिया और आप उस हाथी पर सवार रहकर जंगल मे पहुंची ।! बह हाथी पक जलादाय में घुसा । उसी समय रानी ने कूद कर वन में प्रचदा किया ! उनके प्रचेथा रत खह् खखा हुआ वन हरा मरा होरया | इस ग्वयर को सन कर घचनमास्ी यहां आया आर रानी का चहिन मान कर अपन घर लिया से गया । कुछ दिला के वाद ही सालिन का पद्मावती के रूप पर इग्या उत्पन्न हा गई आर किसी बहान से उसने उस अपन घर सर निकार्ट दिया । निरादा हाकर रानी समान भामि में आई धशर यहीं उन्हें एक पे: उत्पभ छुआ जिसे एक मातंग [ चाण्डाल | उठा कर ल्ट चला । रानी के विरोध करन पर उसने कहा कि बह यथाथ में एक विद्याधर था । एक मुनि की दाप से मांग होगया । उस शाए का प्रतीकार मुनि ने इस प्रकार से किया था कि जब करकण्ड का दन्तिपुर के इसशान में जन्म हा तब उसे चालक का ले जाकर उसका लालन पालन करना चाहिये ! यड़ा हाोन पर जब उस उस लगर का राज्य मिल ज़ावगा तब चह मातंग पुनः घिदाधर होजावेगा। उसके इस्व प्रकार कहन पर तथा बालक का यथाखित रूप से ठालन पालन करने की प्रतिशा करने पर रानी ने अपना पुत्र उसे सांप दिया । उस मानेग ने बालक का अच्छी तरह रफ्खा और स्वर्य स्वृूब पढ़ाया लिस्वाया । उस के हाथ में कण्ड् ( सग्वी खुजली ) हानि से उसका नाम




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