धर्म शर्म अभ्युदय | Dharm Sharma Abhyuday

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Dharm Sharma Abhyuday by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तात्रना श्७ प्रतापसे ही श्राचार्य सानदुंग काराशहसे बाहर निकले थे, चादिराज-सुनिका कुष्ठ दूर हुआ था, पंडितराज जगन्नाथका गड़ाफे प्रवाहने सुस्पर्श' किया था | कमनीय काव्योंक्रे सुननेसे ही तहवदय पुरुषोंको श्रनन्त आनन्द उत्न्न होता है और काव्यके प्रभावसे ही सुकुमारमति बालक कुपथसे हट कर सुपथ पर आ्राते हैं । काव्यके भेद-- काव्य दो प्रकारका होता है एक इश्य काव्य श्रौर दूसरा श्ाव्य काव्य । इृश्यकाव्य नाटक, रूपक, प्रकरण, प्रहंसन, श्रादि अनेक मेद वाला है । इस काव्यमें कविका हदय चित्रमय होकर रडमूमिभे अवती होता है श्रौर झपनी मावमज्ञियोंसि दर्शकोके मनको मोहित करता है । कहना न होगा कि श्राव्य कांव्यकी अ्रपेद्ं दृश्य काव्य लैनता पर श्रधिक असर डाल सकता है श्राव्य काव्य बह है जो कशंइन्द्रियका विषय हो। इसमे कविका हृदय 'किठी भौतिक रूपसे प्रकट नहीं होता, किन्तु वह अलौकिक रूप लेकर संसारमें प्रकट होता है जो कि शरोताश्रोके श्रचणु- मार्गसे भीतर प्रवेश कर उनके “हृदयको श्रानन्दित करता हैं । शरीर- दृष्टिसे आव्य काव्य, गद्य श्र पद्यकी श्रपेक्षा दो तरहका माना 'गया हैं जिसका शरीर-्ाकार छन्द'रहित होता है वह गच काव्य कहलाता है श्र जिसके श्ाकार कई 'तरहेके छत्दोसे 'श्रललंकृत दॉफर प्रकट हाता है'वह पद काव्य कहलाता है। एक काव्य इन दोनोंकि स्ेलसे भी' बनता है'जिसे चम्पू कहते हैं 'गदयपयमयं काव्य चर्पूरत्यसिधीयते”.। काव्यमें रस-- जैन रिंद्वान्तके अनुसार साठारिक शात्माओमे 'प्रतितमव हास्य, रति, शरति, शोक, मय, जुगुप्ठा श्र वेद'ये नोकिसितकपाय, रुत्ता श्रयवा उदयकी झपेक्षा वि्यमान'रहती हैं। जब हास्य वरौरहवा निमित्त मिलता




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