व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भाग - २ | Vyakhyapragyaptisutra Volume - Ii
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
666
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वियाहपण्णत्तिसुत्तं (भगवईसुत्त॑)
विषय-सूची
छठा शतक रे-१०२
प्राथसिक दे
छुठे बातकगत उद्द शकों का संक्षिप्त परिचय
छठे दातक की संग्रहणी गाथा चर
प्रथम उद्देशक--चेदना (सुत्र २-१४) प्र--१२
महावेदना एवं महानि्जरा युक्त जीवों का निर्णय विभिन्न हष्टान्तों द्वारा ५, महावेदना श्रौर
महानिर्जरा की व्याख्या ८, क्या नारक महावेदना श्रौर महानिर्जरा वाले नहीं होते ? ८, दुरविदोध्य
कर्म के चार विशेषणों की व्याख्या €, चौवीस दण्डकों में करण की श्रपेक्षा साता-श्रसाता-वेदना
की प्ररूपणा €, चार करणों का स्वरूप ११, जीवों में वेदना श्रौर सिर्जरा से संवन्धित चतुर्भगी
का निरूपण ११, प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथा १२ ।
द्वितीय उद्देबक--श्राह्मार (सुत्र १) १३-१४
००
जीवों के श्राह्र के सम्बन्ध में श्रतिदेशपुरवेंक निरूपण १३, प्रज्ञापना में वर्णित श्राह्मर
संवन्धी वर्णन की संलिप्त क्रांकी १३ ।
तृतीय उद्दे झाक--महाश्रव (सुत्र १-२९) १४-३६
तृतीय उद्दशक की संग्रहणी गाथायें १४५, प्रथम द्वार--महाकर्मा श्रौर अ्रल्पकर्मा जीव के
पुदुगल-बंध-भेदादि का हप्टान्तद्वयपुर्वक निरूपण १४५, महाकर्मादि की व्याख्या १७, द्वितीय द्वार--
वस्त्र में पुदुगलोपचयवत् समस्त जीवों के कर्मपुदुगलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? एक प्रश्नोत्तर
१८, तृतीय द्वार--वस्त्र के पुदुगलोपचयवत् जीवों के कर्मोपचय की सादि-सान्तता श्रादि का
विचार १९, जीवों का कर्मोपचय सादि-सान्त, श्रनादि-सान्त एवं श्रनादि-श्रनन्त क्यों और कंसे ? २०,
तृत्तीय द्वार--वस्त्र एवं जीवों की सादि-सान्तता आदि चतुर्भगी प्ररुपणा २१, नरकादिगति की सादि-
सान्तता २२, सिद्ध जीवों की सादि-ग्रनन्तता २२, भवसिद्धिक जीवों की श्रनादि-सान्तता २२,
चतुर्भ द्वार-श्रप्ट कर्मों की वन्धस्थिति श्रादि का निरूपण २२, वंधस्थिति २३, कर्म की स्थिति: दो
प्रकार की २४, झ्रायुप्यकर्म के नि्पेककाल श्रीर अवाधाकाल में विशेषता २४, वेदनीयकर्म की
स्थिति २४, पांचवें से उन्नीस्र तक पत्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की श्रपेक्षा से
कमंवच्ध-श्रवन्ध का निरूपण २४, श्रप्टविधकर्मवत्धक-विपयक प्रइन क्रमद्द: पन्द्रह द्वारों में
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