व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भाग - २ | Vyakhyapragyaptisutra Volume - Ii

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भाग - २  - Vyakhyapragyaptisutra Volume - Ii

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वियाहपण्णत्तिसुत्तं (भगवईसुत्त॑) विषय-सूची छठा शतक रे-१०२ प्राथसिक दे छुठे बातकगत उद्द शकों का संक्षिप्त परिचय छठे दातक की संग्रहणी गाथा चर प्रथम उद्देशक--चेदना (सुत्र २-१४) प्र--१२ महावेदना एवं महानि्जरा युक्त जीवों का निर्णय विभिन्न हष्टान्तों द्वारा ५, महावेदना श्रौर महानिर्जरा की व्याख्या ८, क्या नारक महावेदना श्रौर महानिर्जरा वाले नहीं होते ? ८, दुरविदोध्य कर्म के चार विशेषणों की व्याख्या €, चौवीस दण्डकों में करण की श्रपेक्षा साता-श्रसाता-वेदना की प्ररूपणा €, चार करणों का स्वरूप ११, जीवों में वेदना श्रौर सिर्जरा से संवन्धित चतुर्भगी का निरूपण ११, प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथा १२ । द्वितीय उद्देबक--श्राह्मार (सुत्र १) १३-१४ ०० जीवों के श्राह्र के सम्बन्ध में श्रतिदेशपुरवेंक निरूपण १३, प्रज्ञापना में वर्णित श्राह्मर संवन्धी वर्णन की संलिप्त क्रांकी १३ । तृतीय उद्दे झाक--महाश्रव (सुत्र १-२९) १४-३६ तृतीय उद्दशक की संग्रहणी गाथायें १४५, प्रथम द्वार--महाकर्मा श्रौर अ्रल्पकर्मा जीव के पुदुगल-बंध-भेदादि का हप्टान्तद्वयपुर्वक निरूपण १४५, महाकर्मादि की व्याख्या १७, द्वितीय द्वार-- वस्त्र में पुदुगलोपचयवत्‌ समस्त जीवों के कर्मपुदुगलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? एक प्रश्नोत्तर १८, तृतीय द्वार--वस्त्र के पुदुगलोपचयवत्‌ जीवों के कर्मोपचय की सादि-सान्तता श्रादि का विचार १९, जीवों का कर्मोपचय सादि-सान्त, श्रनादि-सान्त एवं श्रनादि-श्रनन्त क्‍यों और कंसे ? २०, तृत्तीय द्वार--वस्त्र एवं जीवों की सादि-सान्तता आदि चतुर्भगी प्ररुपणा २१, नरकादिगति की सादि- सान्तता २२, सिद्ध जीवों की सादि-ग्रनन्तता २२, भवसिद्धिक जीवों की श्रनादि-सान्तता २२, चतुर्भ द्वार-श्रप्ट कर्मों की वन्धस्थिति श्रादि का निरूपण २२, वंधस्थिति २३, कर्म की स्थिति: दो प्रकार की २४, झ्रायुप्यकर्म के नि्पेककाल श्रीर अवाधाकाल में विशेषता २४, वेदनीयकर्म की स्थिति २४, पांचवें से उन्नीस्र तक पत्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की श्रपेक्षा से कमंवच्ध-श्रवन्ध का निरूपण २४, श्रप्टविधकर्मवत्धक-विपयक प्रइन क्रमद्द: पन्द्रह द्वारों में [ १७ |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now