प्रतियोगी राजनीति विज्ञान भाग - 1 | Pratiyogi Rajneeti Vigyan Bhag - 1
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है. अवियोगी राजनीति विज्ञान (खण्ड 72
विज्ञान और व्यावहारिक राजनीति विज्ञान । प्रथम भाग में राज्य के मूल ठत्वों, सिद्धान्ों और आदरशों पर विचार किया
जाता है जबकि दूसरे भाग में उन साधनों का विवेचन होता है जिनके द्वारा राज्य अपनी शक्ति को अभिव्यत्त और श्रयुक्त
करा है ।” पिलक्राइस्ट ने राजनीविं विज्ञान के शेर के सम्बन्ध में तीन ठस्वों पर बल दिया है--(0 राज्य व्य वर्तमान
स्वरूप (0) राज्य का ऐतिहासिक स्वरूप एवं (४) राज्य का भावी स्वरूप ।” विलोवी ने माना है कि “राजनीति दिद्ान
ठीन बातों पर विचर करता है-साम्य, प्रशासन तथा दिधि ३”
उजनीति दिज्ञान वी छोत्र सम्बन्धी परिभाए उनें से हमारे समझ तीन विचारधाणएँ आदी है-(1 इस विचारधारा
के अनुसार वेवल राज्य (2) केवल सरकार और (3) राज्य ठदा सरकार दोनों का अध्ययन । किन्तु यह ध्यान रखने
योग्य है कि परिभया की भति राजनीति विज्ञान के झेत्र में इस मानव्तत्यों की पेश नहीं दर सब्ते अठः राजनीति
विज्ञान के क्ययन-छेड़ में याज्यू सरकार एवं मनुष्य ठीनों हो अगदे ईै।
राज्य का अध्ययन-राजनीति विज्ञान राज्य का सर्वागीण गौर सर्वसलिक अध्ययन है। इसमें राज्य के अवीद,
देन उप भाडी तीनों स्वरूपों का अध्ययन किया जादा है 1 राजनीति विज्ञान के अध्ययन सेत्र में राज्य का वर्दमान
स्वरूप, संगठन, औपित्य, ट्देश्यु बर्यशेत्र आदि शामिल है । राज्य के स्वन्य के अत्तर्गव राजठ्, प्रजातव आदि सांद्यतं
की विवेदरा का जी है । सरकार के संगठन की दृष्टि से विभिन्न अ्गों झ्औौर उनसे सम्बन्धित सिद्धान्ों का अप्ययन इसमें
सम्मिलित मै । कार्यक्षेत्र की द”> से व्यविठदादी, समाजवादी, गांधीवादी आदि दिभिन सिद्धान्त राजनीठि विज्ञान व्य विपय
है। इस प्रव्यार देश का कुशल प्रशसन, स्टार्नय स्वशासन तथा अन्दरष्ट्रीय सम्बन्धों, कूटनीति, सन्धि-मयझौते, दिस्व-शन्ति
आदि से सम्बन्धित समस्याओं व्य अप्ययन राजनीति विद्वान में किया जाटा है । राज्य के ठात्क'लिक स्वरूप मर मगठन
स मतुष्य ब्ये सहाप नहीं होटा अद प्ररम्प से ही बढ़ आदर्श राज्य व्य स्व लेठा रहा है । प्लेटो, अरस्तु मूर आदि ने
आदर्श राज्य व चित्रण किया है।
सरब्दार का अप्ययन-सरकार वह उपकरण है जो रान्य के स्वरूप की ड्रियत्मक अभियक्यि करता है। धन्य
अयूर्व चस्तु है और सरकार उसका मूर्व रूप, अत: सरव्धर के अध्ययन के अभाव में राज्य व्य मप्ययन कोई महत्व नहीं
रखता । राजनीलिं विज्ञान में मरकार के विभिल अगो, उनके सगठन क्र्यशेत्र, उन अगों के पारस्परिक सम्बन्ध, राजन ठिक
दस, जनमत, स्थानीय शासन ठदा दबाव-गुों (लि८६5एा८ (52005) व्य विवेचन भी किया जा है ।
मनुष्द का अप्ययन-राजनीठि दिश्ञान के अन्तर्गत मनुष्य के अधिकारों, राज्य के प्रति उसके कर्तव्यों, मनुष्य दया
रज्य के पारस्परिक सप्बन्धों का अप्ययन किया जाठा है। मनुष्य के वे क्रिया-कलाप, जिनका सम्बन्ध राज्य और शासन
से है, इम विषय की अध्ययन सम हैं । राज्य मानव प्रगठि व्य सूचक है । राजनीदि दिद्धान में परिवर्वद विद्यस समाजिक
एवं बौद्धिक वाहावरण आदि व्य क्रम भी ध्यान में रखना पड़टा है ।
अनाएंप्टीय दियि एवं सम्बन्धों का अध्ययन--रायनीठि दिज्ञान राज्य और सरकार के सर्वागीण अध्ययन के
साध-साद मानकतत्व और ऊपुनिक बाठादएण व्य अध्ययन दरदा है । एनसइव्लोपीडिया ऑफ सोरान साईसेज में हरमत
हेनट ने अपने फूट 55006 नपर सेस में ठजनति विज्ञात को प्तिपाय समयों व्य विवेयन दरदे हुए लिखा
है कि “आज राजदीति विज्ञान में प्रधानक: राजनीदिक शक्ति की पूर्ति, उसके दृद्ौवरा और वितरण की समस्या एवं इन
अक्रियाओं के पारम्परिक सम्बत्धों, व्य, बफ्ययत्र, किया, प्यता. दै, दिल, दा, '्ैएगेलिक, प्यलतत्पायु माबत्यी, चर्य, 'प्ूिद,
आिक, सैनिक, नैदिक, घर्मिक ठथा राष्ट्रीय वाठावरण और व्यनून के अनुसार जनरक्ति राज्प-सम्धा व्या स्वरूप पारण
बरती है । इसमें मइत्वपूर्ण राजन दिक समुदायों, विशेषडर राजनौटिऋ दलों के सगठन और व्यर्यों व्या वर्गन एवं दिस्लेषय
फिया जाता है ।” ही
सन् 1948 में सदुक्त राष्ट्र सप के युनेस््रे ((एएप500) के एक सम्मेलन में ाजनवि विज्ञान के शेद पर
विचार करें था। यूनेस्क्ो के मतुसार राजनीति विज्ञा का विषक-ऐेज निम्तकित प्रमुख चार शाखाओं में विधाननीय
माला गया
(10. राजनीठिक सिद्धान (?०४0४८व प्ण्ती में राजनठिक विदारों का इतिहास ठथा राजन दिक सिद्धान्त
सम्मिलित हैं।
(2) राजनीनिक सस्वरएँ (स७06८21 10लपएंतक5) मैं संविधान, रा्रीय सरकार, बदिशिक ठदा स्थादीय रयसन
और तुलनात्मक राउनीठिक सस्याएँ सम्पिलिव हैं।
ि) राजगीठिक दल (एटा हिमपंटडी में यासदीदिक दलों, समुदाय चनसद दबाव सयूद सरकार शव
मशासन में जनदा के यंगदान आदि दया अध्ययत निहित है।
(4) अनपंद्वीय सम्बध्प (पलच्टप००डां झटाडप0च5) में अन्तरय्ट्रीय सगठन, ब्रष्ट्रीय प्रशासर, अ्र्पड्वीव
सस्पएँ दा अन्दर्यशोय दिदि सम्मिलित है ।
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