आधुनिक शासन पद्धतियाँ | Adhunik Shasan Paddhatiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
586
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्् आधुनिक चयासन पद्धतियाँ
राज्य का ऐतिहासिक जाधार--इसलिये मानव जाति को सस्वागत प्रयर्ति
का प्रत्येक जब्ययन उसकी ऐविह्ासिक पृष्ठ भूमि पर जावारित होना चाहियें। परन्तु,
यह संत्य है कि ऐतिहासिक घटनाओं की जटिकता ऐसी है कि किसो भी समूह नघवा
जाति का सास्कतिक जीवन ममझने के लियें यह समझना जरूरी है कि वह समाज
किन किन विशेष अवस्थाणो या परिस्थितियों से गुजरा है। इसलिये चाहें हम सामाजिक
और आर्थिक पर्यावरण के प्रति व्यक्ति को प्रतिक्रियाओ से क्तिने भी परिचित
क्यो न हो, फिर भी उस समाज के लोगों के व्यवहार की केवल मनोवज्ञानिक आध/र
पर व्याख्या करने के प्रयत्न से उसके वर्तमान सास्कृतिक जीवन का सही झन्दाजां
नहीं हो सकता। फिर भूमडल के भिक्न-सित्र भागों में इन पर्यावरणों को विविधता
से उन सस्वाओ, मूल-तत्वो, प्रणलियों और सिद्धान्तो को विविधता को यदि पूरी
तरह नहीं तो भी बहुत कुछ समझाया जा सकता है जिनके द्वारा प्रत्येक समाज अपने
जीवन के ढगो को अभिश्यक्त करता है। आवुनिक राज्य, जैसा कि हेनरी सिजविक
ने जोर दिया है, एक ववानिक राज्य है। इस राज्य का एऐतिह।सिव विवि
प्राचीन भारतीय, पूनानां तथा रोमन काल से लेकर, अघकारमय मध्य युग के साम्त”
बाद नौर दवतर् ( ९0८120 ) के उत्यान और पतन से होकर आज को
वैज्ञानिक सताथ्दी जौर देश की सोमाओ के नतिक्रमण के युग तक के इतिहास के
पन्नों में देखा जा सकता है।
आधुनिक राज्य, जिसके शासन से हम यहाँ सम्बन्धित हूँ, एक जत्यन्त जटिस
और सगदित समाज है जिसका जपने बार्यों वा आदेश उस समाज से नो बिल्कुल भिन्रं
है जैमा कि दो दर्ताब्दियों पहुजे था। वर्ठमान विचार धारा के जनुसार राग्य एक
समाज सेबी राज्य” है जिसवा वर्तव्य जोवन के सभी पहलुजा में जपन नार्गारिका के
बल्याण का ध्यान रखना हू। जौर की से ' कल्याण कारों राज्य की घारणा को भी
समझा जा खगता है। उसको सार्व जनितर लाभ के कामों वा निर्वाचिक ((00060100 610
नही बल्ति ग्रबन्घक (घा 8131) के रूप में लेना है। बामा से जत्पधिक वृद्ध
हो जान के वारण राज्य का शामनयय इनना जटिल हो गया है कि छोगपप्रशासन
(एऐवए0ं० तप 513 1011) नव्ययन, प्रशिक्षण जोर जनुमधान थी दुप्टि में
एक नलग दिपय ही बन गया है। कमा को वढ़तों हुई जिम्मेदारिया का सनालना
य्त्येव लाधुनिक राज्य के लिये सुद्झानें को एक मदत्वपू
उमके दे वानिक सिद्धान्त तवा झासतयन्तर पर शासय
देने बी आवश्यवतां है।
सविपान समाज का ढाचा दतलाता हु
जपिक व्यापय गुण प्रत्येक राज्य से उसके
ण॒ समस्या बन गई है । अत
1 और नागरिक का सतत ध्यान
ही
ये राग्या में इन सम्पा का सकते
व्यवितदा तथा सहायक संस्थाओं के दौच
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