साठोंत्तरी हिन्दी कविता में लोक सौन्दर्य | Sathottari Hindi Kavita Men Lok Saundry

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Sathottari Hindi Kavita Men Lok Saundry by प्रो सत्यप्रकाश मिश्र - Prof Satyaprakas Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकास क्रम को रेखाकित करना चाहती है। आज वस्तुत इतिहास लेखन की एक नयी धारा का उन्मेष हुआ है, जिसमे 'इतिहासकारो का पूरा जोर इस बात पर नही होता कि किसी काल मे क्या घटा? अपितु यह जानने को इच्छुक होता है कि जब कोई घटना घट रही थी तब लोग उसके बारे मे क्या सोच तहे थे”! इसमे इस पर ध्यान दिया जाता है कि ये लोग कैसे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कराते थे। अब इनकी सख्या मे लगातार वृद्धि हो रही है। इस लोक चेतनाबादी दृष्टि का विकास किन परिस्थितियों मे हुआ, यह जानना हमारे लिए बेहद रोचक है। वस्तुत 18वी शताब्दी के अत और उन्नीसवी शताब्दी के आरम्भ मे जब व्यापारी एव पूँजीवादी सभ्यता मे आदमी, जन का लोप होने लगा, तो यूरोप के बौद्धिको मे जन को खोजने का रुझान बढा। इस बिंलुप्त हो रहे जन के लिए उन्होने सर्वप्रथम उसकी पारम्परिक लोकप्रिय सस्कृति को खोजने का अभियान चलाया जो इस सभ्यता मे लुप्त हो रही थी!” और इस तरह लोक की अवधारणा का विकास हुआ। [774 ई0 मे जे0 बी0 हर्डर ने 'फाक स्लाइड' (५४०1४ 51160) अर्थात 'फाकसाग' (लोकगीत) का प्रचलन किया। इस शत्ताब्दी के अत तक लोक कथाओ के ही अर्थ मे थोडा उससे भिन्न 'फाक साज' (४०1६-५४४७) शब्द का जन्म हुआ। 19 वी शताब्दी के प्रारम्भ मे जोसेफ गोरेस नामक पत्रकार ने 'फाकलोर' शब्द का जन्म हुआ। 1850 मे 'फाकस कासपोल' शब्द इसके लिए प्रयुक्त हुआ। विभिन्न यूरोपीय देशो मे इसी तरह की शब्दावलियो प्रचलित हुई (उपर्युक्त तथ्यों हेतु हम डा0 बद्री नारायण लोक सस्कृति एव इतिहास के ऋणी हैं)। यूरोप मे लोक प्रिय सस्कृति के प्रमुख सिद्धान्तकार जे0जी0 हर्डर ने यह सिद्धान्त स्थापित किया कि पुनर्जागरण के बाद के विश्व मे पुरानी कविता का नैतिक प्रभाव लोकगीत मे ही सुरक्षित है। इसके दूसरे बडे सिद्धान्तकार 'ग्रिम' ने 'लोकप्रिय सस्कृति' की सामुदायिकता के सिद्धान्त को स्थापित किया। इन दोनो के




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