पंत का प्रगतिवादी काव्य | Pant ka Pragati Vadi Kavy

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Pant ka Pragati Vadi Kavy by प्रमिला त्रिवेदी - Pramila Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' जीवन परिचय एवं युगीन परिस्थितियाँ 9 प्रथम रचना हार” को जन्म दिया । उसके लिए उपयुक्त वातावरण प्रस्तुत किया । हार की पृष्ठभूमि--प्राकृतिक सुषमा और सौन्दय॑ कौसानी तथा नेतीताल के सौन्दर्य का ही प्रतिबिब है |”? पंत्त जी ने अल्मोड़ा और कौसानी-काल' में अथवा यों कह सकते हैं कि ग्यारह और सोलह साल की आयु के बीच अधिकतर तात्कालिक विषयों पर ही कविताएँ लिखीं । उस समय के भाव एवं विचार भले हीं अपरिपक्व एवं . अविकसित रहे हों पर पंत को उन्हें छंदबद्ध करने में विज्षेष आनन्द ।मिलता था | और छंदों के मधुर संगीत ने उन्हें यहाँ तक मोह लिया था कि इन दिनों _ अनेक पत्र उन्होंने छंद में शुथकर ही लिखे | “अपने-पास-पड़ोस और दैनंदिनी की परिस्थितियों एवं घटनाओं से प्रभावित होकर मेरी प्रारम्भिक रचनाएँ निःसृत हुई हैं और अपनी अस्फुट अबोध भावना भाषा की अस्फुट तुतलाहट में बाँघकर मैं अपने छंद-रचना-प्रेम को चरिताथं करता रहा हूँ ।””* इन प्रारम्भिक कविताओं के माध्यम से पंत जी ने एक आदर्श की स्थापना करने की चेष्टा की ' हैं। वे मानवोचित स्वतन्त्रता, सच्चाई, एकता, आनंद आदि के गौरव को _ प्रकट करती हैं | “अरूप”, “हिमालय, कागज के फूल, “तम्बाकू का घुआँ” तथा 'गिरजे का घण्टा” आदि उनंकी प्रारम्भिक रचनाएँ आदर्शपरक होने के साथ-साथ मौलिक प्रयोग भो हैं । [गरजे का घण्टा”ं नामक कविता में पंत्त ने जागरण का आह्वान किया हैं । यह कांवता पुण होते ही उन्हें लगा कि यह कविता अच्छी है । कविता इस प्रकार थी--- “नम की उस नीली चुप्पी पर धघण्टा है एक टँगा सुन्दर, जो घड़ो-घड़ी मन के भीतर कुछ कहता रहता बज-बज कर | भरते स्वर में मधुर रोर, जागो रे. जागो काम चोर, डूबे प्रकाश में दिशा छोर, अब हुआ भोर अब हुआ भोर ।” “उपयुक्त रचना मैंने अपने किशोर चापल्य के कारण नीले रंग के रूलदार लेटर पेपर पर उत्तारकर श्री मैथिलीशरण गुप्त के पास उनकी सम्मति के .. लिए भेजी थी । गुप्त जी ने सहज सौजन्यतावद उसके हाशिए में दो-चार घ पदक 1. सुमित्रानन्दन पंत : जीवन और साहित्य--शांति जोशी, पृ० 90 | . 2. शिल्प और दान, पृ० 217, शांति जोशी द्रा उद्धृत ।




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