प्रार्थना - प्रबोध | Prarthna-prabodh

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Prarthna-prabodh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राथेना को महिमा श्७ उदार विचारों से रांगि-दृष का भाव क्षीोण हो जाता है । जितने भ्रज्ो में विचारों की उदारता होगी उतने ही झर्नों मे राग-द्ेंष की क्षीणता होगी और जितने ही शभ्रशो में राग-द्वेष की क्षीणता होगी उतने श्रशो मे निराकुलता-ज्ञाति प्राप्त होगी । इस प्रकार विश्वशाति का सूल मन्त्र है-- परमात्मा की विजय की कामना करते रहना । ः इस विजय कामना की एक विशेषता यह भी है कि इसकी श्राराघन। से सामूहिक जीवन के साथ ही साथ वैय- क्तिक जीवन का भी विकास होता है । इससे सिफं राष्ट्र या राष्ट्र-समूह ही लाभ नहीं उठा सकते वरन्‌ व्यक्ति भी अपना जीवन उदार, समभावपु्ण श्रौर शाँत बना सकते हैं । प्रथम तो परमात्मा के भजन करने का श्रवसर मिलना ही अ्रत्यन्त कठिन है, तिस पर ग्रनेक प्रकार की बाधाएं सेव ताकती रहती हैं श्रौर मौका मिलते ही उस श्रवसर को व्यथे बना डालती हैं । इस प्रकार मानव जीवन की यह घड़िया श्रनमोल हैं। यह घडिया परिमित हैूँ। ससार मे कोई सदा जीदित नही रहा श्रौर न रहेगा ही । श्रतएव प्राप्त सुभवसर से लाभ उठा लेना प्रत्येक बुद्धिमान्‌ पुरुष का कर्तव्य है। अतएव परम भाव से परमात्मा का स्मरण करो । यह इवासोच्छू वास, जो चलता रहता है, समभक्ो कि सेरा नही किन्तु परमात्मा का ही चलता है। इसे खाली मत जाने दो । प्रत्येक इवास श्रौर उच्छ वास मे परमात्मा का स्मरण




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