उभरते - रंग | Ubharate - Rang

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Ubharate - Rang by दुलीचन्द जी दिनकर - Dulichand Ji Dinakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 मजबूरी में मौज, मानों चाहैं.... मानवी. 1 पण है. दुखरी घोज, चेतन '. चितनें सातरी ॥ प झूठ... सुधा वे-नुूद, घोले.. घर-घर मानवी । जहर साच की दूद, चेतन ! मिले न मरणने ॥




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