हिंदी के आधुनिक महाकाव्य | Hindi Ke Adhunik Mahakavya

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Hindi Ke Adhunik Mahakavya by गोविन्दराम शर्मा -Govindram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र हिन्दी के श्राघुनिक महाकान्य महादेवी वर्मा कविता के सम्बन्ध में कहती हैं 7 भ 'प्सनुष्य स्वयं एक सजीव फविता है। फदि की कृति तो उस सजीद कविता छा डाव्दचिर-मात्र है, जिससे उसका व्यवितत्व श्रौर संसार के साथ उसकी एकता जानी जाती है ।” “सत्य काव्य फा साध्य घ्ौर सौन्दर्य उसका साधन है* 1” आधुनिक हिन्दी-कविता में छायावाद श्रीर प्रगतिवाद का विद्योष श्रादर है। वर्तमान कवियों तथा लेखकों की काव्य-स्वरूप-विपयक घा रणाएँ मुख्यतया छायावादी और प्रमतति- वादी दृष्टि-कोणों से प्रभावित्त हें । छायावादी कवि कविता में आदरशवाद को श्रौर प्रगति- वादी यथार्थवाद को प्रघानता देते हैं । छायावादी दृष्टिकोण कविता में व्यक्तित्व, कल्पना श्रीर झ्रभिव्यक्ति-सौप्ठव को विशेष महत्त्व देता है किन्तु प्रगतिवादी कवि काव्य में सामु- दायिक जीवन की अभिव्यक्ति, यथाथंता श्री र व्यावहारिकता देखना 'वाहते हूं। वास्तव में प्राचीन काल से लेकर श्रव तक भारत में काव्य स्वरूप-सम्वन्धी घारणाएँ भ्रनिश्चित- सी चली झा रही हें । काव्य के स्वरूप के परिवर्तन-शील होने के कारण इन धघारणाशओों में श्रनिश्चितता का होना स्वाभाविक भी है । पाइलात्य विद्वानों ने भी काव्य के स्वरूप का विवेचन करते हुए काव्य की मिनन- भिन्न परिभाषाएँ मिश्चित की हैं। उनमें से कुछ परिभाषाएँं यहाँ उदूघृत की जाती हैँ :-- . जानसन के मत में कवित्ता 'छन्दोवद्ध रचना' है । कारलायल 'संगीतमय विचार' को कविता मानते हैं । शेली का कथन है--'साघारण अर्थ में फत्पना की भ्रभिव्यक्ति को कविता कहा जा सकता है* ।' हैजलिट के विचार में 'कविता कत्पना श्रौर भावनाप्ों की भाषा हु + वर्डस्वर्थ का कथन है--“फविता प्रवल मनोवेगों का स्वच्छन्द प्रवाह हि* ।' मेथ्यू- श्रात॑ल्ड के अनुसार “कविता मूलतः जीवन को व्याख्या हे? । रस्किन के मत में 'कबिता १. महादेवो का विवेचनात्मक गद्य, पृष्ठ ४१ र. महादेवी का विवेचनात्मक गद्य, पृष्ठ १ । ३. फ06४ 15 081 ८0ा008800.--उं०0ाइ070, ४. 2०6५४ पर पाप ट ताप 5०81 पि0प््ा।.--ए8ए916, ् 2०6घऐए एप 8 हलाल8] 52156 घ्राध४ 96 तीफटर्त 85 धदुट55- $णा 0 पा08छी08100.--आएलाठफ, ६. 1 (९००) कं पराह 1घाट0826 01 (८ फाए8ा807 घाते कु 55- इ०्05.--पष्य्प, ७. छि०९४ए 15 फल 800प8प8005 09109 0 00मटापि! टिटपा085 नश्ेणतथभ०, * थ रह. ०१४1५ 8६ 00000 8 ए्ंनिलेंडाा 01 परेटि,--विधिव्ण ठैताणत




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