सरस्वती जून | Sarswati June 1969

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Sarswati June 1969 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६६६ विशेषाधिकारों श्रौर बढ़ी हुई श्राथिक हिसियत के कारण संसद सदस्यों का एक नया वर्ग बन रहा है जो शासकों श्रौर प्रद्यासकों के वर्ग के समान जनता से श्रघिक़ाधिक दुर होता चला-जा रहा है। इससे उत्पन्न सामाजिक विषमता देश के भविष्य के लिए श्रशुभ प्रमाणित होगी । , श्पॉलो-१० की आश्चर्थननक सफलता--चन्द्रमा पर मंतुष्य को उतारने की योजना की तंयारी में अपॉलो-१० की यात्रा सम्बन्धी झाइच्यंजनक सफलताओं से प्रेरित होकर _ छु९६१ में श्रमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति कंनेडी ने घोषणा की थी कि १९७० के पहिले अमरीका झ्रपने किसी श्रंतरिक्ष यात्री को चन्द्रमा पर उतार देगा । उस समय अमरीका के वैज्ञानिकों को भी इसकी पूर्ति में सच्देह था । किन्तु वे इस काभ में एकाग्र चित्त से लग गये श्रौर श्रपॉलो- १० की उपलब्धि उनकी झ्राश्य से भी श्धिक सफल रही । श्रारम्भ में वहाँके वैज्ञार्निकों में इस बात पर मतभेद था “कि 'चन्द्रमा पर मनुष्य को किस प्रकार उतारा जाय वैज्ञा- निकों के एक दल का मत था कि पूरे यान को सीधे चन्द्र-तल पर उतारा जाय, श्रौर दूसरा दल कहता था कि वह इतना “भारी (प्राय; ७ टन) है कि शंतरिक्ष में उसे छोड़ने के लिए एक करोड़ बीस लाख पाउण्ड की ठोकर देनेवाले प्रक्षेप्य की श्रावश्यकता होगी । किन्तु जो सबसे शक्तिशाली प्रक्षेप्य उपलब्ध था वह था दानिं-४ जो ७५ लाख पाउण्ड की ठोकर 'देता है इस दूसरे मत के वैज्ञानिकों में प्रमुख थे डा ० हुबोल्ट। *उनका कहना था कि श्रन्तरिक्ष यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकषंण वृत्त में परिक्रमा करता रहे, श्रौर उसमें से एक छोटे यान ' (नॉड्यूल) में बैठकर एक-दो श्रंतरिक्ष यात्री चन्द्र-तल पर उतरें ।- इस छोटे यान में ऐसे इंजन लगे रहें जो चलाने पर उसे चन्द्रतल से इतना ऊँचा उठा दे कि वह परिक्रमा करते ' हुए. श्नन्त रिक्षयान के पास पहुँच जाय, श्रौर वे उसमें से निकल- “रक मुख्य भ्रंतरिक्षयान में श्रा जायें, श्रोर तब अपने इंजिन ' चलाकर मुख्य यान चन्द्रमा के गुरुत्वाक्षण बृत्त से निकल “कर पृथ्वी पर लौट श्राने की यात्रा श्रारम्भ कर दे । भ्रन्त में डा० हूबोल्ट की योजना के श्रनुसार ही काम किंया गया । “ किन्तु इस “यात्रा के लिए जिन संयंत्रों, बेतार के संचार साधनों, बेतार से चित्र और चलचित्र भेजने श्रादि की जो “व्यवस्था की गयी थी उनकी जाँच श्रावश्यक थी । यह भी ' झावद्यक था कि चस्द्-वल के बारे में झधिक ' जानकारी सम्पारदकीय प 'प्रा्त की जाय, श्रौर चंद्रतल पर जहाँ ये श्रंतरिक्षयात्री उतारे जायें, वहाँकी,, रिथति, धरती. की बनावट, ' उसकी 'नरमी-कठोरता श्रादि का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया जाय । इसके लिए '“अ्रपॉलो' नामक-झ्तरिक्षयान बनाया गया, श्रौर 'जाँच-पड़ताल के लिए १० 'भ्रपॉलो' यानों को चंद्रमा के 'निकट भेजा गया । प्रत्येक “अपॉलो' की यात्रा से कुछ न कुछ महत्त्वपूर्ण नयी, बातें माश्ुम हुई तथा उसमें लगे संयंत्रों की कार्यप्रशाली की त्रुटियों झ्ौर। विश्वसनीयता की पुष्टि की गयी । अपॉलो-१० श्रंतिम परीक्षणयान था । इसका उद्देश्य चद्रमा के गुरुत्वाकर्षण वृत्त में पहुँचकर यह देखना था कि उससे जिस छोटे यान (मॉड्यूल) में बैठाकर मनुष्य चंद्रतल पर उतारे जायेंगे, वहू यान उत्तर कर झपने इंजिनों के बल से मुख्ययान तक लौट सकता है या नहों । जब श्रपॉलो-१० चन्द्रमा की गुरुत्वाकषंण परिधि में पहुंच गया तब वह चंद्रमा से.१३० किलोमीटर की दूरी पर उसकी परिक्रमा करने लगा, श्र उसने दो मनुष्यों को छोटे यान में वैठाकर चंद्रमा की झोर भेजा । यहू छोटा यान चंद्रतल पर उत्तर सकता था, किन्तु, इसका यह उद्दद्य नहीं था । इस वार तो केवल यह 'देखा जा रहा था कि वह ठीक काम करता है या नहीं । भ्रतएव वह चद्रतल से १५ किलोमीटर (साढ़े नौ मील) की ऊंचाई पर पहुंचकर रुक गया श्रौर चद्रमा की परिक्रमा करने लगा । सागरमाथा (माउण्ट ऐवरेस्ट) समुद्रतल से प्रायः ५ मील ऊँचा है। यह छोटा यान चप्रतल से उस ऊँचाई की दुगनी से कुछ कम ऊँचाई तक पहुँच गया था। इतने निकट से किसी मनुष्य ने चंद्रमा के दर्शन नहीं किये थे । दूरवीनों की सहायता से उन दो शभ्रमरीकियों ने चन्द्र- तल का सूक्ष्म निरीक्षण किया । इसके बाद श्रपने छोटे यान के इंजिन को, चाल करके वे, पुवं योजना के झ्रनुसार, ऊपर उठे श्रौर मुख्य यान तक पहुँच गये । वे,छोटे यान, से निकल कर, श्रंतरिक्ष ही में, मुख्य यान में घुस गये, श्रौर पृथ्वी को वापस लौट झाये । इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि (१) मुख्ययान से निकलकर श्रौर छोटे यान में बैठकर चंद्रतल_तक पहुँचा ,जा सकता है, श्रौर (२) यह छोटा यान श्रपने इंजिन की शक्ति से परिचालित होकर चंद्रतल से ऊपर उठकर फिर मुख्य यान तक पहुँच सकता है । _ _ श्रपॉलो-१० की ' यात्रा असाधारण रूप से. सफल हुई । उसके सब जटिल से जटिल संयंत्र बिल्कुल ठीक तरह 'से काम करते रहे । वैज्ञानिकों ने उसका जो कार्यक्रम बचाया




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