इन्कलाब जिंदाबाद | Inklab Jindabad

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1029 Inklab Jindabad 1939 by श्री सत्यनारायण शर्मा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--इन्कठाब-जिन्दाबाद-- १४ खेर अच्छा दी है। घरका कामकाज देखो । और जो ब्यक्ति ऐसी सलाह देता है वह स्वयं बिल्कुछ निकम्मा विद्यार्थी होकर भी लकषाधीश पिताका पुत्र होनेके कारण बहुत शीघ्र ही विदेश जानेकी तेयारी करनेवाला है । अँधेरा घना होता जा रहा है सूरज डूब चुका है आकाशें अगणित तारे मुसकरा-मुसकराकर मानव-जातिकी सामाजिक व्यव- स्थाका उपदास कर रहे हैं ...और कुछ दूरसे आवाज आरही है-- कह कहू कुछ मठिन वस्त्र पहने हुए मुसठमान लड़के सड़कके बीचमें छड़ पड़ते हैं। आपसमें गाठी-गछौज करने छाते हैं। फिर मार-पीठ होने छाती है । एक छड़की जा रही है । उसके दाथमें एक छड़ी है जिसमें बेढा और चमेठीकी कई माठाए हैं। लड़कोंसे धक्का खा. कर वह गिर पड़ती है। उसकी माछाएं राहकी घुछसे खराब हो जाती हैं। बह रोने छाती है। एक युवक उसके पास जाता है और पूछता है-- रोती क्यों हो चोट तो नहीं छगी ? .. नददीं चोट तो नहीं ठगी लेकिन घरपर मां आज मुके मारेगी बोछेगी कि तू माछाए बेचकर सब पेसोंको खच कर आयी हैं। नवयुवक अपने अन्य साथियोंकी ओर अभिमानपू्वेक देखता है और पाकेटसे एक इकन्नी निकालकर दे देता है। छड़की डरती- डरतो इकनती ले छेती है और घरकी ओर भाग जाती है । बड़े आदमियोंकी बड़ी बात होती है । देखो --एक मुख छमाम सोदागर अपने साथीसे कहता है।




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