स्वानुभवसर का सूचीपत्र | Swanubhavasar Ka Suchipatra

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Swanubhavasar Ka Suchipatra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुमिका ] (5) व भट्ट तचादि पुरुपों त॑ सेरी थे प्राथना हि कि जाप सटे तालुभवी दावे इस यम्थका मनन अट्ट तानुभव में परम उपकारक द्वाग। यात पाप अन इय ही इस ग्रन्यफा झवलोफन करें 1 शोर घिचारसागर तथा चृत्तिप्रभाकर इन ग्रयाकि पढ़े इधे पुरूषों कूँ चाहिये दि इस ग्रस्थका पठन सवश्य ही फरे काहेते कि इन यन्ये ैं हाँ २ झनुभवके विपयंत उ्पो निसंय शेप रह यया है यो इस ग्रम्य से गखा है ॥ सब ये फोर समुक्ो कि इस ग्रम्पफे ३ भाग है तिनमें प्रथम भाग से पयमतका विवेचन दिया है काहे से कि न्याय शास्त्रका मत देत है ऐसे एनि फरिके विदर्त के यन्यों में इसके मतका सशडन किया है परम्तु रन न्थकारों ने ये दिचार महीं किया कि गौतम ऋषि शोर कणाद ऋषि स- स थागी रहे उनका मत दत कैसे हेसके टत मत तो श्रुति घिरुद् है या- ' हमने चनफा भत शोर शरू.लि इनकी एकयाफ्यता फरिक उनफा सत [स भागे अद्ीत दिं्गया दि श्रोर उनका मत भट्टत दे द समे चनके सूत्र ते प्रमाण दिखाये हैं से विद्ज्जन इसका साद्धरत शधलोफम करें ॥ / शोर इस यन्थके द्वितीय भाग मैं अविद्याके स्वरुपका विवेचन दिन दे से घयिद्या तम जैसी श्ायरण स्वभाव नहीं है फिनतु सच्चिदानन्द नरूपा है ये थे थुति युक्ति भ्ोर शनुभय इनतें सिह किया दै सा ट्ज्जन या! वी भादन्त छयलोकर्न करें ऋोर इसके तुतीय भाग सै पान स्वरूप का दिधेवचन किया ऐ से! ज्ञान दत्ति रुप नहीं दे किर्तु पत्तिति लन्नण है से दिद्ज्जन याद यी सादयर्त छवलोन करे 1 रस्में या फहों पुरुपस्वभाधसुलभ प्रामादिफ सेस छे।ये ता श्ता+ नुभव पुरुप शोधन थी करे परन्तु रुपा रिक ठस स्पकीय शोधन लेख सदीय ड्रष्टि याचर थी कर लबेँ थे मेरी प्राप॑ना हि ॥। शुभम्‌ ॥ आ्रीरामएभातरपोपदेष्ट! धी जय पुरी यगेंस्रुतपाठशा्याध्यापक श्री दू्ची « बशोट्भव परिइत गेापीनाधशमा 0 शुभम्‌




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