श्री रत्नचन्द्र पद मुक्तावलि | Shri Ratnachandra Pad Muktavali

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Shri Ratnachandra Pad Muktavali by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३० 30 देर 3३ श्पट द्ध ३६ ३७ 3८ भ्ध ४४ ४२ ४३ श्री रर्लचन्द्र पद मु क्तावली [5 थांरी फूल सी देह पलऊ में पले, ६४-६४ इण काल रो भरोसो भाई रे को नहीं ६४-६७ कथलो मांडयो रे, साघुनी करे चखाणु ६७-१५० सुक़त करते रे मू'जी, थारी पड़ी रददेला पूजी १००-१०९ नगरी खुद वणी छे जी जिणरा सिद्ध घणी छे जी ए०२-२०४ सगत खूत्र सिली छे रे १०४-१६८६ निमंल्र शुद्ध समकित जिण पाई १०७-१५६. चेत चेत रे चेत चतुर नर सिनख जमारो पाय रें१०४-१११ जगत सट्ठ सपने की माया रे श्१२ गाफिल केम मुसाफिर,(ठग लागा तेरी लार ११३ त्याग नहीं पार की नारो, ते श्रावक किम उतरे पारो ११४-११६ व घर श्रावोजी * * * सारा मन गमता मद्दाराज १९१७-१८ तू किण रो कुण थारो रे चेतनिया १९६ जोवनिया की सोजा फोजा जाय नगारा देती रे... १९० उलटी चाल चल्यो रे जीवडला १२९ निन्दा न करिये रे चेतन पारकी श्२९ सम नर साघु किन के सिन्त १२३ खुढापो वेरी 'भावियो दो श्र सीख शुद्ध मानों रे संतशुरु की ._ १२४--१२४




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